Beti Shally Se Vartalap
बेटी शैली से वार्तालाप -
नरेश अग्रवाल कविता की दुनिया में एक मुकाम बना चुके हैं और इन दिनों अपनी सहजता, जीवन बोध के उछाल और बिम्बधर्मिता के कारण चाव और उत्कंठा से पढ़े जा रहे हैं। इस बार वे ' बेटी शैली से वार्तालाप' नामक कृति लेकर आये हैं।
बेटियाँ, जो पृथ्वी का सौन्दर्य हैं, मन के भटकावों और तूफ़ानों के बीच हमें एक ऐसे रिश्ते से नवाजने वाली हैं जो हमारे सीने में कुछ विलक्षण स्पन्दन तो उत्पन्न करता ही है, हमारी भावना को एक सुकुमार स्थायित्व एवं एक दायित्व बोध भी देता है। आपसी नातों में हम जिस गर्माहट, जिस अन्तरंगता, जिस गहरी समझ की चाहना ताउम्र करते हैं, नरेश जी उसे इस कृति में एक तल्लीनता और प्रवणता के साथ लाते हैं।
पुस्तक के हर पृष्ठ पर हम बेटी से उनके एक स्नेहिल, चिन्तनशील एवं जीवनोन्मुख पिता की तरह बतियाने का सुखद अनुभव करते हैं। यह अनुभव हमारी घनिष्ठतम अनुभूतियों का हिस्सा होने के कारण हमें अपनी एक चिरपरिचित और किंचित विस्मयकारी पूँजी जैसा लगता है।
भाषा पूरी बातचीत में धूप की तरह फैली हुई है। यह कृति पाठकों को बाँधकर रखेगी और वे इसमें अपनी दुनिया के कुछ अन्तरंग और पारदर्शी अहसास पायेंगे।
—सत्येन्द्र कुमार रघुवंशी (आई.ए.एस.), (सेवानिवृत्त) वरिष्ठ साहित्यकार