Publisher:
Vani Prakashan

Bhakti Ke Stree-Svar

In stock
Only %1 left
SKU
Bhakti Ke Stree-Svar
Rating:
0%
As low as ₹379.05 Regular Price ₹399.00
Save 5%

भक्ति के स्त्री-स्वर - भक्ति, प्रीति, ममता– ये तीन जो महाभाव हैं, उन्हें साधते हुए मनुष्य ऐसा एकतारा हो जाता है जिससे जब निकलते हैं, स्त्री-स्वर ही निकलते हैं यानी उत्कट निर्व्याज समर्पण के स्वर जहाँ सब तू-तू मैं-मैं मिट जाती है। मुक्ति के दो ही रास्ते सम्भव हैं—पहला रास्ता ध्यान का है जहाँ अहंकार की सरहद बढ़ाते-बढ़ाते इतनी बड़ी कर बड़ी ली जाती है कि सारा ब्रह्माण्ड उसमें समा जाये! वह हुंकार-भरे संकल्प से सधता है, इसलिए पौरुष की आहट इसमें होती है। दूसरा रास्ता भक्ति का ही है जहाँ क्रमिक अहंकार का विलयन अन्त में उस स्थिति में ले आता है जहाँ कोई पराया नहीं रहता। एक के बहाने सारी दुनिया अपनी-अपनी-सी लगने लगती है- 'जित देखौं तित लाल'। यही रास्ता भक्ति का है जिसके अवतरण से सारी उग्रता तिरोहित हो जाती है और मनुष्य में वह मूल स्त्री तत्त्व बीज रूप में बच जाता है और वह बीज है उत्कट समर्पण में बहे आँसू का एक क़तरा जो अपनी सब सरहदें लाँघकर सागर में मिल जाता है- 'फूटा कुम्भ जल जलहिं समाना, यह तत कह्यो गियानी।'
वर्जिल शायद इसे ही 'टियर इन द हार्ट ऑफ़ थिंग्स' कहते हैं। भारतीय मनीषा, जो सुभग रूपकों में अपनी बात कहने की अभ्यासी है, ध्यानमग्न शिव की आँखों से आँसू के रूप में रुद्राक्ष झड़ने की कल्पना करती है। उसके बाद पौरुष का प्रतीक शिव भी आधे तो स्त्री हो ही जाते हैं, ठीक वैसे जैसे रास के बाद कृष्ण राधा के कपड़े पहन लेते हैं, राधा कृष्ण के कपड़े पहन लेती हैं और कृष्ण की आँखों से, पुरुष की आँखों से विश्व देखने को तत्पर हो जाती हैं! लिंग-विपर्यय का यह रूपक दरअसल चित्त की उस स्थिति का द्योतक है जब लिंग चेतना से भी ऊपर उठ जाता है मनुष्य, फिर वर्ग-चेतना, वर्ण और नस्लगत पूर्वग्रहों की तो बात ही क्या ! वर्ग-वर्ण-नस्लादि तो दुनियावी क्यारियाँ हैं कृत्रिम विभेद, लिंग-विभेद कृत्रिम विभेद नहीं, प्राकृतिक विभेद है पर प्रेम/भक्ति/ममता के शीर्ष पर उसकी भी चेतना नहीं रहती।
-अनामिका

ISBN
Bhakti Ke Stree-Svar
Publisher:
Vani Prakashan

More Information

More Information
Publication Vani Prakashan

Reviews

Write Your Own Review
You're reviewing:Bhakti Ke Stree-Svar
Your Rating
Copyright © 2025 Vani Prakashan Books. All Rights Reserved.

Design & Developed by: https://octagontechs.com/