Bharatiya Vivah Sanstha Ka Itihas
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भारतीय विवाह संस्था का इतिहास का यह दूसरा संस्करण है। आद्य समाज के विकास के इतिहास के प्रति गहन अनुसन्धानात्मक एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण की परिचायक यह पुस्तक इतिहासाचार्य राजवाडे के व्यापक अध्ययन और चिन्तन की एक अनूठी उपलब्धि है। स्वर्गीय विश्वनाथ काशीनाथ राजवाडे के बारे में जैसा कि कहा गया है : "जैसे ही उन्हें पता चलता कि किसी जगह पर पुराने (इतिहास सम्बन्धी) कागज पत्र मिलने की सम्भावना है, वह धोती, लम्बा काला कोट, सिर पर साफा पहने, अपने लिए भोजन पकाने के इन-गिने बर्तनों का थला कन्धे पर डाले निकला पड़ते और उन्हें प्राप्त करने के लिए अथक परिश्रम करते।" इसी परिश्रम का सुपरिणाम था-मराठा का इतिहास की स्रोत-सामग्री बाले मराठांची इतिहासाची साधने महाग्रन्थ का 22 खण्डों में प्रकाशन वहा संस्कृत भाषा और व्याकरण के भी प्रकाण्ड पण्डित थे, जिसका प्रमाण उनकी सुपसिद्ध कृतियाँ राजवाडे धातुकोश, तिडकत विचार तथा संस्कृत भाषेचा उलगडा, आदि हैं। प्रस्तुत पस्तक भारतीय विवाह संस्था का इतिहास के लिए भी उन्होंने परिश्रमपूर्वक टिप्पणियाँ (नोट्स। तैयार करने तथा प्रबन्धों के रूप में उनका विशदीकरण करने का कार्य आरम्भ किया था जो, दुर्भाग्य से, 31 दिसम्बर 1926 को उनका निधन हो जाने के कारण पूरा नहा हा सका। इस पुस्तक के लिए श्रमसाध्य विधि से तैयार की गयी उनकी टिप्पणियाँ तथा 'संशोधक' नामक पत्रिका के दुर्लभ अंकों से उपलब्ध तविषयक उनके निबन्ध, यहाँ पुस्तकाकार प्रकाशित है। मालिक अनुसन्धान प्रवृत्ति का द्योतक, भाषा और अभिव्यक्ति के अन्य साधनों के उद्भव से सम्बन्धित उनका लेख भाव-विचार प्रदर्शन के साधनों। का विकास भी इसमें समाविष्ट कर लिया गया है। यह सारी सामग्री मूल मराठी पुस्तक भारतीय विवाह संस्थेचा इतिहास के मूल पाठ में जिस क्रम में प्रकाशित है, उसी क्रम में यहाँ अनूदित रूप में प्रस्तुत है। जैसा कि स्पष्ट है इतिहासाचार्य राजवाडे कल्पना लोक में विचरण करने वाले, मनोनिष्ठ, आदर्शवादी मान्यताओं में विश्वास करने वाले व्यक्ति न थे। उनका दृष्टिकोण विज्ञान-उन्मुख था। उल्लेखनीय हकि वन्य समाज और प्रागैतिहासिक समाज की स्थितियों का विश्लेषण व आषं प्रथाओं का विवेचन करते समय उन्होंने पुराणों, श्रुतियों, संहिताओं, महाभारत तथा हरिवंश आदि में उपलब्ध साक्ष्यों को अपने अनुसन्धान कार्य का आधार बनाया है। अस्तु। पस्तक के मूल मराठी प्रकाशकों के हम आभारी हैं, साथ ही पुस्तक की अनुवादिका सहित उन अन्य सभी लोगों के भी, जिनके सहयोग के फलस्वरूप हिन्दी में इसका प्रकाशन सम्भव हुआ।
ISBN
9789350009598