Bharatiyata Ka Kavya Bhaktikavya

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"भक्ति आन्दोलन मध्यकालीन अन्धकार का सांस्कृतिक प्रतिरोध और प्रतिकार है। विदेशी आक्रान्ताओं के पददलन के प्रतिरोधस्वरूप भारतीय चिन्ताधारा नयी चेतना और नयी ऊर्जा के साथ भारतीयता का पुनराविष्कार करती है। साथ ही, समाज को चेतना के स्तर पर संगठित भी करती है। यह सांस्कृतिक जागरण और संगठन विषम परिस्थितियों में भारतीयता को बचाये रखने का जतन है। यह जतन कश्मीर से कन्याकुमारी तक और कच्छ से कामरूप तक स्पष्ट दिखायी पड़ता है। कबीरदास, सूरदास, तुलसीदास, मीराबाई, लल्लेश्वरी, नानकदेव, रैदास, श्रीमन्त शंकरदेव, माधवदेव, रसखान, जायसी, चण्डीदास, नामदेव, चैतन्य महाप्रभु, जयदेव आदि इस मध्यकालीन सांस्कृतिक क्रान्ति के सूत्रधार हैं। इन्होंने अपने-अपने ढंग से भारतीय समाज की चेतना का परिष्कार किया। सनातनी संस्कृति का सर्वोत्तम इन सांस्कृतिक योद्धाओं का पाथेय है। धर्मान्तरण के रक्तरंजित दबावों और चमचमाते प्रलोभनों से जूझते समाज के अन्दर अपने धर्म के प्रति गौरव जाग्रत करते हुए इन्होंने भारत की सनातन संस्कृति के संरक्षण और संवर्द्धन की उल्लेखनीय परियोजना चलायी। हतभाग्य और पददलित समाज के अन्दर आत्मविश्वास और एकता पैदा करते हुए भारतीयता की प्राणरक्षा की। धर्मप्राण भारतीय समाज के मन और चिन्तन में परमात्मा की पुनः प्रतिष्ठा महनीय कार्य था। पाशविकता के बरअक्स मनुष्यता और भौतिकता के वरअक्स आध्यात्मिकता की प्रतिष्ठा इस परियोजना की मूलप्रेरणा रही है। इस काव्य में सामाजिक संशोधन और उन्नयन की चिन्ता केन्द्रीभूत है। मनुष्यभाव और भारतबोध इस काव्य की धमनियों में आद्योपान्त धड़कते पाये जाते हैं। भक्तिकाव्य में उदात्त मानव मूल्यों की सार्वजनीन और सार्वभौमिक उपस्थिति है। भक्ति आन्दोलन भारत की सांस्कृतिक एकात्मता को भी आधार प्रदान करता है। 'म्लेच्छाक्रान्त देशेषु' को 'निसिचरहीन' करने के प्रण का परिणाम यह काव्य भारतीय समाज की सांस्कृतिक स्वाधीनता का भी संकल्प-पत्र है। इस अन्तर्धारा के अनेक आयाम और रूप होते हुए भी यह विविधताओं की एकता का काव्य है। इसी एकता और भारतीयता के सूत्रों की पहचान और पड़ताल का फलागम यह पुस्तक है। "
ISBN
9789355184085
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