Bhasha Sahitya Aur Sanskriti Shikshan
भाषा साहित्य और संस्कृति शिक्षण -
भारत की बहुभाषिक और बहुसांस्कृतिक संरचना में दूसरी भाषा के रूप में हिन्दी शिक्षण की अपनी आवश्यकताएँ और समस्याएँ हैं। विदेशी भाषा के रूप में भी हिन्दी शिक्षण की अलग माँग है। फिर भी अन्य भाषा हिन्दी शिक्षण पर हिन्दी में पुस्तकों का नितान्त अभाव हैं। इस तरह की जो किताबें हिन्दी में प्रकाशित हैं उनमें में अधिकतर व्याकरण-शिक्षण की परिधि तक सीमित है। इसका एक कारण तो यह है कि इन पुस्तकों के लेखक या तो शुद्ध भाषावैज्ञानिक हैं या हिन्दी के वैयाकरण अतः वे सिद्धान्त चर्चा से बाहर नहीं निकल पाते और संरचना केन्द्रित भाषा शिक्षण को ही भाषा अधिगम का प्रथम और अन्तिम सोपान मानते हैं।
दूसरा कारण यह है कि भाषावैज्ञानिक पृष्ठभूमि के इन लेखकों की साहित्य-भाषा में तनिक भी रुचि नहीं है जबकि अन्य भाषा के शिक्षण का बहुत बड़ा हिस्सा पाठ केन्द्रित होता है। भारत के भाषाविद् और साहित्यवेत्ता दो खेमों में बँटे हुए हैं। भाषाविज्ञानी साहित्य से और साहित्यकार आलोचक भाषाविज्ञान से अपने को कोसों दूर रखते हैं। अन्य देशों में ऐसा नहीं है, क्योंकि वे जानते हैं कि साहित्यिक कृति में भाषा अध्ययन की तथा भाषा में सर्जनात्मकता की अनन्त सम्भावनाएँ निहित हैं। कारण कुछ भी हों, अन्य भाषा शिक्षक को सम्बोधित सामग्री का हिन्दी में नितान्त अभाव है, इसमें दो राय नहीं। हिन्दीतर क्षेत्रों तथा विश्व के अन्य देशों में हिन्दी पढ़ानेवालों को यह पुस्तक ध्यान में रखकर तैयार की गयी है।
अतः अन्य भाषा शिक्षण की पृष्ठभूमि, भाषा तथा भाषा-शिक्षण की अधुनातन संकल्पनाओं का सरल विवेचन इस पुस्तक की अपनी विशेषता है। अन्य भाषा-शिक्षण के इतिहास का लेखाजोखा देनेवाली और समय-समय पर इस ज्ञान क्षेत्र में आये परिवर्तनों की ओर संकेत करने वाली यह हिन्दी में पहली पुस्तक है।
भाषा, साहित्य और संस्कृति शिक्षण के बीच अन्तःक्रियात्मक प्रणाली का प्रतिपादन करने से यह पुस्तक अधिगम विकास की उस संकल्पना को साकार करती है, जिसमें शिक्षण की एक सीमा के बाद भाषा-अध्येता स्वतः अपने प्रयास से अपनी भाषायी और भाषा प्रयोग की शक्ति का विकास करने की और उद्यत होता है।
Publication | Vani Prakashan |
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