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Vani Prakashan
Bhasha Shikshan
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भाषा शिक्षण की समसामयिक विधियों के पीछे इन दो दशकों में होने वाले भाषा चिन्तन सम्बन्धी परिवर्तन का हाथ देखा जा सकता है। भाषा सिद्धान्त के अभिविन्यास में संरचनात्मक भाषाविज्ञान के स्थान पर हम संज्ञानात्मक भाषाविज्ञान का प्रचलन पाते हैं, अधिगम सिद्धान्त के क्षेत्र में स्किनर और आसगुड के 'साहचर्यवादी' दृष्टिकोण के स्थान पर एक ओर चॉम्स्की, काट्स, लेनेबर्ग आदि का 'सत्ववादी' दृष्टिकोण पाते हैं और दूसरी तरफ वीवर, फ्रोडर, पिआजे, ब्राउन आदि विद्वानों द्वारा प्रतिपादित 'प्रतिक्रियावादी' दृष्टिकोण को विकसित होते देख रहे हैं। इसी तरह हम पाते हैं भाषा शिक्षण के 'केन्द्रक' में नया परिवर्तन ।
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