Publisher:
Vani Prakashan

Bhikhari Thakur

In stock
Only %1 left
SKU
Bhikhari Thakur
Rating:
0%
As low as ₹284.05 Regular Price ₹299.00
Save 5%
"भोजपुरी के ‘शेक्सपियर' और 'अनगढ़ हीरा' कहे जानेवाले भिखारी ठाकुर अकेले लोककलाकार हैं, जिन्होंने अपने गीत और नाटकों द्वारा न केवल जनता का मनोरंजन किया, बल्कि समकालीन सामाजिक समस्या और विसंगतियों को उजागर कर उनके ख़ात्मे और सुधार का प्रयास किया। इसीलिए उन्हें 'लोकजागरण का महानायक' कहा जाता है। लोककलाकार भिखारी ठाकुर पर उनके जीवन काल से अब तक छोटी-बड़ी कुछ रचनाएँ मिलती हैं। अपने जीवन काल में ही लीजेंड और मिथक बन चुके भिखारी ठाकुर समय बीतने के साथ और भी सामयिक और प्रासंगिक बनते जा रहे हैं। सोशल मीडिया और यू-ट्यूब चैनलों पर उनके गीत और नाटकों को गाने और दिखाने की होड़ सी मची है हर लोकगायक भिखारी ठाकुर का कोई-न-कोई गीत अवश्य गाना चाहता है। शारदा सिन्हा से लेकर कल्पना पटवारी और आज के चर्चित कलाकारों तक, प्रायः सबने भिखारी ठाकुर के गीत गाये हैं। भोजपुरी की पहली फ़िल्म 'हे गंगा मईया तोहे पियरी चढ़इबो' पर उनके 'गंगा-स्नान' और 'बिदेसिया' नाटक का प्रभाव है। 'बिदेसिया' नाटक पर अलग से फ़िल्म बनकर चर्चित हुई थी। उन पर अनेक शोध-अनुसन्धान हुए हैं और हो रहे हैं। किन्तु भिखारी ठाकुर पर अभी तक कोई वैसी प्रामाणिक और स्तरीय पुस्तक नहीं आयी है, जिससे इस क्रान्तिकारी कलाकार के राष्ट्रीय महत्त्व और ख्याति का मूल्यांकन किया जा सके। चर्चित लेखक हरिनारायण ठाकुर की यह पुस्तक इसी दिशा में एक महत्त्वपूर्ण प्रयास है। भिखारी ठाकुर के गीत और लोकनाटक अपने आप में एक आन्दोलन है। नवजागरण से लेकर आज़ाद भारत के 70वें दशक तक लिखने और नाचने-गानेवाले इस लोककलाकार ने बहुत बड़ा लोकजागरण और सांस्कृतिक नवजागरण पैदा किया था। उन पर आर्यसमाज से लेकर उस ज़माने के प्रायः सभी सामाजिक और सांस्कृतिक आन्दोलनों का प्रभाव पड़ा था। भिखारी ने अपनी कला के माध्यम से भेदभाव मिटाकर एक सन्तुलित समाज की स्थापना का प्रयास किया है। बकौल लेखक–“भिखारी सामाजिक व्यवस्था को तोड़ते नहीं हैं। उसी व्यवस्था में सबकी महत्ता स्थापित करते हैं। बुद्ध और गांधी ने भी नहीं तोड़ी। उसी में सुधार और उद्धार किया। कबीर, रैदास, फुले, पेरियार और अम्बेडकर ने तोड़ने की कोशिश की। किन्तु समुद्र में उठे तूफ़ान और लहरों की तरह व्यवस्था फिर सतह पर आ गयी। इतने थपेड़े खाकर भी बद्धमूल व्यवस्था और रूढ़ियाँ जहाँ की तहाँ बनी हुई हैं। फिर भी, भले ही जातियाँ और वर्ण-व्यवस्था नहीं टूटी हों। पर उनके बीच की दूरियाँ कम ज़रूर हुई हैं। समानता, स्वतन्त्रता और भाईचारे में वृद्धि हुई है। सामाजिक न्याय पहले से अधिक सुलभ हुआ है। यह निरन्तर उठनेवाली लहर और थपेड़ों का ही परिणाम है। सामाजिक न्याय के इस आन्दोलन में भिखारी ठाकुर का योगदान किसी से कम नहीं है। भिखारी ठाकुर ने कोई तूफ़ान और बबण्डर नहीं उठाया, बल्कि अपनी कला की महीन कैंची से विसंगतियों को कतर डाला। भिखारी ने कहा कि मुख भले ही श्रेष्ठ हों, पैर के दर्द से आह मुख से ही निकलती है, भुजा जब सेज सजाता है, तो उस पर सबसे पहले पैर ही बैठता है। पेट की बीमारी पैरों के दौड़ने से ही ठीक होती है। मनुष्य का सबसे पहला नाम 'बबुआ' फिर ‘भइया’, फिर ‘बाबू', तब 'बाबा' । इसीलिए शूद्र सबसे प्राथमिक और श्रेष्ठ है- प्रथम शूद्र, द्वितीय बइस, तृतीय क्षत्री हाथ। चौथे ब्राह्मण बकत मुख, सभी रहत एक साथ।। भिखारी आगे कहते हैं- बाबा- बाबू-भइया-बबुआ का पदवी का भाव। कहत भिखारी हाथ जोरि के, ठीक चाही बरताव।। -चौवर्ण पदवी "
ISBN
Bhikhari Thakur
Publisher:
Vani Prakashan
More Information
Publication Vani Prakashan
हरिनारायण ठाकुर (Harinarayan Thakur)

"हरिनारायण ठाकुर : जन्म : 23 फ़रवरी 1956, खैरबा (मेजरगंज), सीतामढ़ी (बिहार)। शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी) प्रशिक्षित, पीएच.डी., ई-लर्निंग। लेखन : वर्ष 1994 से पत्र-पत्रिकाओं में नियमित लेखन-प्रकाशन एवं रेडियो, दूरदर्शन पर वार्ताएँ प्रसारित। पुस्तक-प्रकाशन : ‘बिहार में अति पिछड़ा वर्ग आन्दोलन’ (2007), ‘हिन्दी की दलित कहानियाँ ‘(2008, कई संस्करण), ‘दलित साहित्य का समाजशास्त्र’ (2009, ‘अद्यतन’ संस्करण-2022), ‘भारत में पिछड़ा वर्ग आन्दोलन और परिवर्तन का नया समाजशास्त्र’ (2009, अद्यतन संस्करण-2022), ‘भारतीय साहित्य का शूद्र-पाठ’ (शुद्ध-पाठ) (2017), ‘कर्पूरी ठाकुर : जननायक से भारत रत्न तक’ (2024), ‘को बाभन को सूदा’ (आत्मकथा, 2025) । पुस्तकों में रचना-संकलन : अनेक स्तरीय पुस्तकों में रचनाएँ संकलित। सम्पादन : ‘युद्धरत आम आदमी' का भंगी विशेषांक, 'मल-मूत्र ढोता भारत' (2008), राष्ट्रीय स्मारिकाओं सहित विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय स्तरीय स्मारिका एवं पत्रिकाओं का सम्पादन। पुरस्कार एवं सम्मान : साहित्यिक-सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक गतिविधियों के लिए कई अन्तरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय और प्रान्तीय सम्मान, ट्रॉफ़ी, शील्ड एवं प्रशस्ति-पत्र। फ़िलहाल : अवकाश प्राप्त प्राचार्य, एम.एस. कॉलेज, मोतिहारी (बी. आर. अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ़्फ़रपुर)। स्वतन्त्र लेखन। "

Write Your Own Review
You're reviewing:Bhikhari Thakur
Your Rating
Copyright © 2025 Vani Prakashan Books. All Rights Reserved.

Design & Developed by: https://octagontechs.com/