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Bhikhari Thakur
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"भोजपुरी के ‘शेक्सपियर' और 'अनगढ़ हीरा' कहे जानेवाले भिखारी ठाकुर अकेले लोककलाकार हैं, जिन्होंने अपने गीत और नाटकों द्वारा न केवल जनता का मनोरंजन किया, बल्कि समकालीन सामाजिक समस्या और विसंगतियों को उजागर कर उनके ख़ात्मे और सुधार का प्रयास किया। इसीलिए उन्हें 'लोकजागरण का महानायक' कहा जाता है। लोककलाकार भिखारी ठाकुर पर उनके जीवन काल से अब तक छोटी-बड़ी कुछ रचनाएँ मिलती हैं। अपने जीवन काल में ही लीजेंड और मिथक बन चुके भिखारी ठाकुर समय बीतने के साथ और भी सामयिक और प्रासंगिक बनते जा रहे हैं। सोशल मीडिया और यू-ट्यूब चैनलों पर उनके गीत और नाटकों को गाने और दिखाने की होड़ सी मची है हर लोकगायक भिखारी ठाकुर का कोई-न-कोई गीत अवश्य गाना चाहता है। शारदा सिन्हा से लेकर कल्पना पटवारी और आज के चर्चित कलाकारों तक, प्रायः सबने भिखारी ठाकुर के गीत गाये हैं। भोजपुरी की पहली फ़िल्म 'हे गंगा मईया तोहे पियरी चढ़इबो' पर उनके 'गंगा-स्नान' और 'बिदेसिया' नाटक का प्रभाव है। 'बिदेसिया' नाटक पर अलग से फ़िल्म बनकर चर्चित हुई थी। उन पर अनेक शोध-अनुसन्धान हुए हैं और हो रहे हैं।
किन्तु भिखारी ठाकुर पर अभी तक कोई वैसी प्रामाणिक और स्तरीय पुस्तक नहीं आयी है, जिससे इस क्रान्तिकारी कलाकार के राष्ट्रीय महत्त्व और ख्याति का मूल्यांकन किया जा सके। चर्चित लेखक हरिनारायण ठाकुर की यह पुस्तक इसी दिशा में एक महत्त्वपूर्ण प्रयास है। भिखारी ठाकुर के गीत और लोकनाटक अपने आप में एक आन्दोलन है। नवजागरण से लेकर आज़ाद भारत के 70वें दशक तक लिखने और नाचने-गानेवाले इस लोककलाकार ने बहुत बड़ा लोकजागरण और सांस्कृतिक नवजागरण पैदा किया था। उन पर आर्यसमाज से लेकर उस ज़माने के प्रायः सभी सामाजिक और सांस्कृतिक आन्दोलनों का प्रभाव पड़ा था। भिखारी ने अपनी कला के माध्यम से भेदभाव मिटाकर एक सन्तुलित समाज की स्थापना का प्रयास किया है।
बकौल लेखक–“भिखारी सामाजिक व्यवस्था को तोड़ते नहीं हैं। उसी व्यवस्था में सबकी महत्ता स्थापित करते हैं। बुद्ध और गांधी ने भी नहीं तोड़ी। उसी में सुधार और उद्धार किया। कबीर, रैदास, फुले, पेरियार और अम्बेडकर ने तोड़ने की कोशिश की। किन्तु समुद्र में उठे तूफ़ान और लहरों की तरह व्यवस्था फिर सतह पर आ गयी। इतने थपेड़े खाकर भी बद्धमूल व्यवस्था और रूढ़ियाँ जहाँ की तहाँ बनी हुई हैं। फिर भी, भले ही जातियाँ और वर्ण-व्यवस्था नहीं टूटी हों। पर उनके बीच की दूरियाँ कम ज़रूर हुई हैं। समानता, स्वतन्त्रता और भाईचारे में वृद्धि हुई है। सामाजिक न्याय पहले से अधिक सुलभ हुआ है। यह निरन्तर उठनेवाली लहर और थपेड़ों का ही परिणाम है। सामाजिक न्याय के इस आन्दोलन में भिखारी ठाकुर का योगदान किसी से कम नहीं है। भिखारी ठाकुर ने कोई तूफ़ान और बबण्डर नहीं उठाया, बल्कि अपनी कला की महीन कैंची से विसंगतियों को कतर डाला। भिखारी ने कहा कि मुख भले ही श्रेष्ठ हों, पैर के दर्द से आह मुख से ही निकलती है, भुजा जब सेज सजाता है, तो उस पर सबसे पहले पैर ही बैठता है। पेट की बीमारी पैरों के दौड़ने से ही ठीक होती है। मनुष्य का सबसे पहला नाम 'बबुआ' फिर ‘भइया’, फिर ‘बाबू', तब 'बाबा' । इसीलिए शूद्र सबसे प्राथमिक और श्रेष्ठ है-
प्रथम शूद्र, द्वितीय बइस, तृतीय क्षत्री हाथ।
चौथे ब्राह्मण बकत मुख, सभी रहत एक साथ।।
भिखारी आगे कहते हैं-
बाबा- बाबू-भइया-बबुआ का पदवी का भाव।
कहत भिखारी हाथ जोरि के, ठीक चाही बरताव।।
-चौवर्ण पदवी
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