Chhattisgarh Ke Lok Aabhooshan
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"आभूषण लोक संस्कृति के लोकमान्य अंग हैं । सौन्दर्य की बाहरी चमक-दमक से लेकर शील की भीतरी गुणवत्ता तक और व्यक्ति की वैयक्तिक रुचि से लेकर समाज की सांस्कृतिक चेतना तक आभूषणों का प्रभाव व्याप्त रहा है। आभूषणों के उपयोग का प्रभाव तन और मन दोनों पर पड़ता है । उनके धारण करने से शरीर का सौन्दर्य ही नहीं प्रकाशित होता, वरन स्वास्थ्य भी सुरक्षित रहता है। सौन्दर्य बोध में उचित समय पर उचित आभूषण पहनने का ज्ञान सम्मिलित है। शरीर विज्ञान के आधार पर ही आभूषणों का चयन किया गया है। पायल और कड़े धारण करने से एड़ी, टखनों और पीठ के निचले भाग में दर्द नहीं होता । ज्योतिषविदों ने ग्रह-नक्षत्रों के प्रभाव से आभूषणों के प्रभाव का सम्बन्ध स्थापित कर एक नयी दिशा खोली है। ग्रहों के बुरे प्रभाव को निस्तेज करने के लिए निश्चित धातुओं और रत्नों का चयन और आभूषणों में उनका प्रयोग
महत्त्वपूर्ण खोज है।
-पुस्तक से
★★★
शृंगार प्रसाधनों में आभूषणों का अपना स्थान है। छत्तीसगढ़ में आभूषणों के पहनने का रिवाज़ सामान्य रूप से प्रचलित है, अगर आपको श्रृंगार देखना हो तो किसी ब्याह-शादी में अथवा तीज-त्योहारों पर इस शृंगार का अवलोकन किया जा सकता है। वैसे मध्यम श्रेणी और श्रमिक वर्ग के द्वारा जो शृंगार किया जाता है, वह आपको मेलों-ठेलों, हाट-बाज़ारों में भी देखने को मिल सकता है। छत्तीसगढ़ी लोकगीतों में इन आभूषणों का चित्रण समय अनुसार हुआ है-
“गोड़ मा रइपुर शहर के बिछिया,
जोगनी कस चमके टिकुलिया
आनी बानी के रूप सजा के तोला
मंय मोहा ले हंव ना
ए मोर हीरा मंय तोला अपन बना ले हंव ना । ।”
★★★
“हर चाँदी हर चाँदी गुन भर के
रानी राजा जूझे केरा बारी माँ ओ, माखुर बारी माँ ओ...
फुलवारी माँ ओ... सुआ ला हर के लेगे ओ ।।”
★★★
“छन्नर छन्नर पइरी बाजय, खन्नर खन्नर चूरी
हांसत कुलकत मटकत रेंगय, बेलबेलहिन टूरी।।”
★★★
“गोड़ के गँवागे बिछिया गंगाजल
असनाने गयेंव मंय तरिया गंगाजल
ओ बिछिया मोर मइके के चिनहा
लिए रिहिस बड़े भइया
घर म कहूँ गोड़ ला देखही भइया मोर
खिसियाही भउजइया गंगाजल ।।”
"
ISBN
9789362870766