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Chhote Saiyyad Bade Saiyyad

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"हिन्दी नाटक के शीर्षस्थ और भारतीय नाटक की पहली क़तार के नाटककार सुरेन्द्र वर्मा का नवीनतम नाटक है— ‘छोटे सैयद बड़े सैयद’। अनेक वर्षों की ऐतिहासिक शोध, मानवीय नियति को समझने और सघन नाट्य क्षणों को पकड़ने वाली सूक्ष्म अन्तर्दृष्टि तथा गहरे रंगमंचीय बोध का नतीजा है यह नाटक। ग्रीस त्रासदी-सा गरिमावान, विषय की तीखी समसामयिकता के साथ कथानक की महाकाव्यात्मक भव्य जटिलता, गीतों का अत्यन्त सार्थक उपयोग और लगभग अस्सी पात्रों का प्रभावशाली नियोजन एवं निर्वाह इस नाटक के ज़रिये भारतीय नाट्य-क्षेत्र में पहली बार दिखाई दिया है। हिन्दी की शैली उर्दू और हिन्दी की विविध बोलियों एवं बोलीगत शब्दावली का पात्रानुकूल व्यवहार इस नाटक की, और कुल मिलाकर सम्पूर्ण हिन्दी नाट्य-भाषा की विलक्षण उपलब्धि है। हिन्दी नाटक के इतिहास में सुरेन्द्र वर्मा अकेले नाटककार हैं, जिन्होंने प्राचीन भारतीय इतिहास की पृष्ठभूमि वाले आठवँ सर्ग तथा सूर्य की अन्तिम किरण से सूर्य की पहली किरण तक, नाटकों में संस्कृतनिष्ठ हिन्दी का प्रयोग किया है। समकालीन दृश्यबन्ध वाले द्रौपदी एवं शकुन्तला की अँगूठी में गहन भावनाओं को व्यक्त करने में समर्थ, पर बोलचाल की सरल हिन्दी ली है, और मध्यकालीन इतिहास के परिपार्श्व वाले ‘छोटे सैयद बड़े सैयद’ में फ़ारसीनिष्ठ उर्दू शैली का व्यवहार किया है। ‘छोटे सैयद बड़े सैयद’ समकालीन भारतीय नाट्य-साहित्य में निस्सन्देह मील का पत्थर है! ★★★ सुरेन्द्र वर्मा का यह नाटक ‘छोटे सैयद बड़े सैयद’ किसी समय विशेष का ऐतिहासिक चित्रण मात्र ही नहीं है बल्कि इतिहास का आधुनिक चेतना के धरातल पर मूल्यांकन करने के साथ-साथ समसामयिक यथार्थ को एतिहासिक स्थितियों और पात्रों के माध्यम से प्रस्तुत करने का एक सशक्त प्रयास है। वस्तुतः यह मानवीय स्थितियों, आकांक्षाओं और दुर्बलताओं का नाटक है। इसकी स्थितियों और पात्र वैसे ही है जैसे हर सुबह अखबार में देखन को मिलते हैं जिसकी कोई भी एक घटना पूरे पृष्ठ पर छा सी जाती है। रंगमण्डल लम्बे समय बाद एक मौलिक नाटक उर्दू में प्रस्तुत कर रहा है जो एक सुखद परिवर्तन है। —निर्देशक श्री ब. व. कारन्त का वक्तव्य "
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सुरेन्द्र वर्मा (Surendra Verma)

"सुरेन्द्र वर्मा - जन्म : 7 सितम्बर, 1941 शिक्षा : एम.ए. (भाषाविज्ञान) अभिरुचियाँ : प्राचीन और मध्यकालीन भारतीय इतिहास, सभ्यता एवं संस्कृति; रंगमंच तथा अन्तरराष्ट्रीय सिनेमा में गहरी दिलचस्पी। कृतियाँ : ‘मुग़ल महाभारत’, ‘तीन नाटक, सूर्य की अन्तिम किरण से सूर्य की पहली किरण तक’, ‘आठवाँ सर्ग’, ‘शकुन्तला की अँगूठी’, ‘क़ैद-ए-हयात’, ‘रति का कंगन’ (नाटक); ‘नींद क्यों रात भर नहीं आती’ (एकांकी); ‘जहाँ बारिश न हो’ (व्यंग्य); ‘प्यार की बातें’, ‘कितना सुन्दर जोड़ा’ (कहानी-संग्रह); ‘अँधेरे से परे’, ‘मुझे चाँद चाहिए’, ‘दो मुर्दों के लिए गुलदस्ता’ और ‘काटना शमी का वृक्ष पद्मपंखुरी की धार से’ (उपन्यास) सम्मान : संगीत नाटक अकादेमी और साहित्य अकादेमी द्वारा सम्मानित। "

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