Chukayenge Nahin
समकालीन रंगमंच में 'बर्टोल्ट ब्रेश्ट' के बाद सम्भवतः 'डारियो फ़ो' एक ऐसे महत्त्वपूर्ण नाटककार हैं जिनकी एक निश्चित सामाजिक-राजनीतिक प्रतिबद्धता है । वे ब्रेश्ट की तरह ही एक सम्पूर्ण रंग व्यक्तित्व हैं- नाटककार, अभिनेता तथा निर्देशक । उनकी इटली और फ्रांस के पारम्परिक रंगमंच की भी बहुत गहरी समझ है ।
यह नाटक चुकाएँगे नहीं (कांट पे ! वोंट पे !) एक ऐसी राजनीतिक परिस्थिति का समाकलन करता है जिसमें स्पष्ट रूप से आम आदमी का ट्रेड यूनियनों और राजनीतिक पार्टियों से मोहभंग हो चुका है और वह इससे पूर्ण रूप से स्वायत्त रहकर स्वयं ही सीधी कार्यवाही का निर्णय करता है ।
आज भारत में भी हमें चारों ओर ऐसी ही अवस्थितियों से दो-चार होना पड़ रहा है। यहाँ भी आम कहे जाने वाले आदमी का राजनीतिक पार्टियों और ट्रेड यूनियनों से विश्वास लगभग उठ ही गया है। ऐसे में आज डारियो फ़ो का यह नाटक बहुत ही प्रासंगिक है