Cinema Ki Soch
सिनेमा की सोच -
हिन्दी फ़िल्म जगत से जुड़ी अनेक जानी-मानी हस्तियों के साक्षात्कारों की यह किताब न सिर्फ़ उसके व्यक्तिगत काम-धाम और विचारों से परिचित कराती है, बल्कि अपनी सम्पूर्णता में यह उन रंग-रेखाओं का पता देती है, जिससे मौजूदा हिन्दी सिनेमा का चेहरा बनता है। इसके पन्नों पर आप हिन्दी सिनेमा के वर्तमान के सूत्रों को देख सकते हैं, उसके पीछे छूट गये अतीत निशानों को छू सकते हैं, तो आगे आने वाले दिनों में उसकी सम्भावनाओं की थाह भी पा सकते हैं।
जिन लोगों के साक्षात्कार यहाँ दिये गये हैं, उनमें निर्देशक, अभिनेता, अभिनेत्री, गीतकार सभी शामिल हैं। इससे इस किताब में मौजूद दृष्टिकोण बहुकोणीय और बहुआयामी रूप में हमारे सामने आता है, जिससे सिनेमा जगत के बारे में पाठक किसी एकांगी नज़रिये का शिकार नहीं बनता और उसे समझने की एक सर्वांगीण दृष्टि पाता है।
अन्तिम पृष्ठ आवरण -
मौजूदा हिन्दी सिनेमा की व्यापक लोकप्रियता असन्दिग्ध है। एक ज़माने में लोकप्रिय सिनेमा और समान्तर सिनेमा का अन्तर उपस्थित कर हिन्दी सिनेमा की मुख्यधारा को गम्भीर विचार-विमर्श के दायरे से बाहर रखा गया। उसकी लोकप्रियता को उसके सस्तेपन या सतहीपन का चिह्न माना गया। ज़ाहिर है तब उसके सामाजिक-सांस्कृतिक निहितार्थों को अनदेखा किया जा रहा था। आज लोकप्रियता और समान्तर का फ़र्क धुँधला गया है। आज संस्कृति के 'पापुलर' तत्वों पर भी नज़र डाली जा रही है ताकि समाज की गति को जाना जा सके और उसके स्वरूप को परखा जा सके। अजय ब्रह्मात्मज की यह पुस्तक इस नज़रिये से एक उल्लेखनीय प्रयास है, जिसमें हिन्दी फ़िल्म-जगत की अनेक जानी-मानी हस्तियों के साक्षात्कारों के माध्यम से समकालीन हिन्दी फिल्म जगत की सोच उजागर होती है।