Daastan-e-Ram

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9789355184733
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हमारी शायरी की जड़ें हिन्दुस्तानी तहज़ीब-ओ-सकाफ़त की मिट्टी में किस गहराई से पैवस्त हैं इसकी बेहतरीन मिसाल आपके हाथ में है। नये दौर की मनफ़ी सियासत ने अपनाईयत-ओ-यगानगत के उस माहौल को हमसे शायद छीन लिया जिसमें मुशतर्का तहज़ीब फलती-फूलती और परवान चढ़ती है। यही वजह है कि उन्नीसवीं और बीसवीं सदी में पंजाब और राजपूताने से लेकर अवध और दक्कन जैसे मक़ामात पर उर्दू रासलीला और रामलीला की पेशकश के हवाले जब-जब हमारे रंगारंग माज़ी की दिलकश कहानी सुनाते हैं तो हमें थोड़ा उदास भी कर जाते हैं। इस एतबार से दास्तान-ए-राम किताबों में महसूर एक गुमशुदा सक़ाफ़त की बाज़याफ्त भी है और एक नयी रिवायत की खुश आइन्द इब्तिदा भी....
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9789355184733
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