Deepshikha
दीप-शिखा -
महादेवी के गीतों का आधिकारिक विषय 'प्रेम' है। पर प्रेम की सार्थकता उन्होंने मिलन के उल्लासपूर्ण क्षणों से अधिक विरह की अन्तरचेतनामूलक पीड़ा में तलाश की। मिलन के चित्र उनके गीतों में आकांक्षित और सम्भावित, अतः कल्पनाश्रित ही हो सकते थे, पर विरहानुभूति को भी उन्होंने सूक्ष्म, निगूढ़ प्रतीकों और धुँधले बिम्बों के माध्यम से ही अधिक अंकित किया। उनके प्रतीकों का विश्लेषण करते हुए अज्ञेय ने कहा : 'उन्हें तो वैयक्तिक अनुभूतियों को अभिव्यक्ति भी देनी थी और सामाजिक शिष्टाचार तथा रूढ़ बन्धनों की मर्यादा भी निभानी थी। यही भाव उन्हें प्रतीकों का आश्रय लेने पर बाध्य करता है।' महादेवी के गीतों में ऐसे बिम्बों की बहुतायत है जो दृश्य रूप या चित्र खड़े करने की बजाय सूक्ष्म संवेदन अधिक जगाते हैं: 'रजत-रश्मियों की छाया में धूमिल घन-सा वह आता' जैसी पंक्तियों में 'वह' को प्रकट करने की अपेक्षा धुँधलाने का प्रयास अधिक है।
अन्तिम पृष्ठ आवरण -
गूँजती क्यों प्राण-वंशी?
शून्यता तेरे हृदय की
आज किसकी साँस भरती?
प्यास को वरदान करती,
स्वर-लहरियों में बिखरती!
आज मूक अभाव किसने कर दिया लयवान वंशी?
अमिट मसि के अंक से
सूने कभी थे छिद्र तेरे,
पुलक के अब हैं बसेरे,
मुखर रंगों के चितेरे,
आज ली इनकी व्यथा किन उँगलियों ने जान वंशी?
मृणमयी तू रच रही यह
तरल विद्युत्-ज्वार-सा क्या?
चाँदनी घनसार-सा क्या?
दीपकों के हार-सा क्या?
स्वप्न क्यों अवरोह में,
आरोह में दुखगान वंशी?
गूँजती क्यों प्राण वंशी?