Dharmasarmabhyudaya
धर्माशर्माभ्युदय
धर्मशर्माभ्युदय की कथा का आधार गुणभद्राचार्य का उत्तरपुराण जान पड़ता है। उसके 61वें पर्व में धर्मनाथ तीर्थंकर के पंचकल्याणात्मक वृत्त का वर्णन है परन्तु उसमें उनके माता-पिता के नाम दूसरे दिये हैं। धर्मशर्माभ्युदय में पिता का नाम महासेन और माता का नाम सुव्रता बतलाया है। उत्तरपुराण में स्वयंवर का भी वर्णन नहीं है। धर्मशर्माभ्युदय के कवि ने काव्य की शोभा या सजावट के लिए उसे कल्पना शिल्पि निर्मित किया है। स्वयंवर यात्रा के कितने ही अंगों का अच्छा वर्णन किया है। जैसे स्वयंवर मंडप में अनेक राजकुमार पहले से बैठे थे। कुमार धर्मनाथ के पहुँचने पर सबकी दृष्टि इनकी ओर आकृष्ट हुई। अपनी सखियों के साथ राजपुत्री श्रृंगारवती भी वहाँ आयी। सखी ने यम-क्रम से सब राजाओं का वर्णन किया। परन्तु श्रृंगारवती की दृष्टि किसी पर स्थिर नहीं हुई। अन्त में धर्मनाथ की रूपमाधुरी पर मुग्ध होकर श्रृंगारवती ने उनके गले में वरमाला डाल दी। धर्मराज ने कुण्डिनपुर की सड़कों पर जब प्रवेश किया तब वहाँ की नारियाँ कुतूहल से प्रेरित हो अपने-अपने कार्य छोड़ झरोखों में आ डटीं। धर्मनाथ का विधिपूर्वक विवाह हुआ।
अन्त में समवसरण के मुनियों की जो संख्या दी है उसमें भी जहाँ कहीं भेद मालूम पड़ता है।