Dharti Ki Karvat

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"धरती की करवट - कविता बड़े साधारण स्वर में आरम्भ होती है। जहाँ तक जनसाधारण और भोले-भाले उन किसानों की भावनाओं को प्रकट किया गया है, वहाँ तक कविता प्रायः अतुकान्त है। भाषा, शैली, कल्पना और वाक्य के स्तर भी अनपढ़ जनता की साधारण चेतना के निकट है। कविता का आरम्भिक हिस्सा गद्यात्मक अधिक है और पद्यात्मक कम । जहाँ से मज़दूरों या कामगारों की बात आरम्भ होती है, कविता वहाँ से तुकान्त हो गयी है और कल्पना का स्तर भी ऊपर उठ जाता है। मानव-सभ्यता के निर्माण में मज़दूरों या कारीगरों का कितना महत्त्वपूर्ण स्थान है, क़लम के सूरमा इस ओर बहुत कम ध्यान देते रहे हैं। कविता के इस हिस्से में इस भ्रम को दूर किया गया है। आगे चलकर जब मशीन युग संसार में स्थापित होता है, वहाँ मशीन के महत्त्व और सभ्यता के निर्माण में मशीन की प्रधानता का वर्णन आया है। और आगे चलकर पूँजीवादी शक्तियों और साम्यवादी शक्तियों के संघर्ष का चित्रण किया गया है। अन्त में उस विश्वव्यापी नूतन जागृति की झलक दिखायी गयी है जो इस युग का सबसे महत्त्वपूर्ण लक्षण है। इतने जटिल और कठिन विषय पर सरलतम भाषा को कलात्मक बनाने का, उर्दू और आधुनिक हिन्दी में काव्य रचने और सरल भाषा को उच्च साहित्यिक स्तर पर ले जाने का यह पहला प्रयास है। पाठकों को गम्भीरता के साथ इस कविता को पढ़ते हुए इस समस्या पर विचार करना चाहिए कि मज़दूरों के उस जीवन को जिसे साहित्य, कला और कविता से वंचित समझते हैं और जिसे खुरदरा, नीरस और शुष्क समझते हैं, उच्च से उच्च काव्य का विषय बनाने में कवि कहाँ तक सफल हुआ है । कवि इस कविता में पत्थर को पारस कर सका है या नहीं । जहाँ तक भाषा का सम्बन्ध है, मातृभाषा या राष्ट्रभाषा को सफल बनाने में कवि कहाँ तक सफल हुआ है, इसका फ़ैसला कवि नहीं इस कविता के पाठक करें । "
ISBN
9788170556787
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