Dimple Vali Premika Aur Bouddhik Ladka
डिम्पल वाली प्रेमिका और बौद्धिक लड़का -
कविता से अपनी साहित्यिक यात्रा शुरू करनेवाले सुन्दरचन्द्र ठाकुर उन चुनिन्दा लेखकों में से हैं, जिन्होंने अपनी रचनात्मक बेचैनी की अभिव्यक्ति के लिए गद्य को भी साधने का प्रयास किया है। दो वर्ष पहले ही उन्होंने अपने पहले उपन्यास 'पत्थर पर दूब' के ज़रिये पाठकों को चौंकाया था और अब उनका यह कहानी संग्रह उनकी कथा-यात्रा का अगला और महत्त्वपूर्ण पड़ाव है। संग्रह की शीर्षक कहानी, 'डिम्पल वाली प्रेमिका और बौद्धिक लड़का', 'लिव इन रिलेशनशिप' के बहाने आधुनिक समाज की वास्तविकता को तो बयान करती ही है, पुरुष श्रेष्ठता व उसके अहंकार से जन्म लेनेवाली त्रासदी की भी रेखांकित करती है। सुन्दर अपनी कहानियों को रूमानियत के क़रीब तो लाते हैं, पर उसे हाशिये पर रखते हुए कुछ इस अन्दाज़ में कथा को बुनते हैं कि वह साहित्यिक ऊँचाई को छूते हुए भी अन्त तक रसीली बनी रहती है। यहाँ उनकी एक छोटी कहानी 'मनुष्य कुत्ता नहीं है' का ज़िक्र ज़रूरी है। उत्तराखण्ड की पृष्ठभूमि पर लिखी इस कहानी में सुन्दर ने मनुष्यता के पतन और उत्थान की ऐसी मार्मिक कथा कही है कि इसकी गणना निःसन्देह श्रेष्ठ कहानियों में की जा सकती है। 'एक यूटोपिया की हत्या' कहानी में ख़बरों के बाज़ार में संघर्ष कर रहे एक आदर्शवादी पत्रकार के जीवन का ऐसा यथार्थवादी परन्तु उतना ही अविश्वसनीय विवरण पढ़ने को मिलता है, जिसके साथ लेखक सम्भवतः इसलिए न्याय कर सका क्योंकि वह स्वयं भी एक पत्रकार है और इस दुनिया को अन्दर और बाहर से ज़्यादा बेहतर देखता-समझता है। 'सफ़ेद रूमाल' एक बेरोज़गार की दर्दनाक दास्ताँ है। इस कहानी में सुन्दर भारतीय समाज में 'जिगोलो' यानी पुरुष वेश्याओं के सच को सामने लाते हैं। 'मुक्ति की फाँस', 'नगरपुरुष' और 'धूप का परदा' तीन ऐसी कहानियाँ हैं, जिनके ज़रिये कहानीकार पुरुष के दम्भ, उसकी यौन इच्छाओं और उसमें भरे नैतिक बोध के बीच द्वन्द्व को सामने लाते हैं। 'बचपन का दोस्त' सम्भवत: उनकी शुरुआती कहानियों में से है, जिसमें वे दिखाते हैं कि शहरों में विस्थापन के साथ-साथ एक व्यक्ति कैसे व्यावहारिक होता जाता है और कैसे उसके भीतर का मनुष्य मरता जाता है। सुन्दरचन्द ठाकुर को यह कहानी-संग्रह बतौर गद्यकार उन्हें और आगे ले जाता है।