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Dr. Syama Prasad Mookerjee
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"यह पुस्तक राष्ट्रीय एकता और अखण्डता के आन्दोलन में अपने प्राण न्योछावर करने वाले एक उत्कृष्ट शिक्षाविद् के सामाजिक और राजनीतिक जीवन का एक संक्षिप्त वृत्तान्त है। शोध पर आधारित यह पुस्तक डॉ. श्यामा प्रसाद मुकर्जी के उन संघर्षों की कहानी है, जिनसे देश की राजनीति में भारतीयता से प्रेरणा लेकर एक नया विकल्प मिला, ऐसा विकल्प जो जनसंघ से शुरू होकर भारतीय जनता पार्टी के रूप में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करा रहा है।
★★★
अपने विचारों और गुणों के कारण डॉ. मुकर्जी ने महात्मा गांधी का ध्यान आकर्षित किया। वह डॉ. मुकर्जी से इतने प्रभावित हुए कि जब 15 अगस्त, 1947 को भारत आज़ाद हुआ, तो उन्होंने पण्डित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्ववाले प्रथम मन्त्रिमण्डल में उन्हें शामिल करवाया। नेहरू के मन्त्रिमण्डल में एक मन्त्री के रूप में उन्होंने एक ऐसी अमिट छाप छोड़ी, जिसने नये स्वतन्त्र देश के औद्योगीकरण की मज़बूत नींव रखी। उन्होंने देश को तेज़ी से औद्योगीकरण की ओर ले जाने का निर्णय लिया। नेहरू के मन्त्रिमण्डल से इस्तीफ़ा देने के बाद डॉ. श्यामा प्रसाद मुकर्जी के नेतृत्व में जनसंघ की औपचारिक शुरुआत हुई और डॉ. मुकर्जी इसके पहले अध्यक्ष बने। डॉ. मुकर्जी ने 'दो विधान, दो निशान और दो प्रधान' के ख़िलाफ़ प्रजा परिषद् के सत्याग्रह का समर्थन किया। अपनी शहादत देकर उन्होंने इस मुद्दे को देश की जनता तक पहुँचाया।
—प्रस्तावना से
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Dr. Syama Prasad Mookerjee
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Vani Prakashan
"यह पुस्तक राष्ट्रीय एकता और अखण्डता के आन्दोलन में अपने प्राण न्योछावर करने वाले एक उत्कृष्ट शिक्षाविद् के सामाजिक और राजनीतिक जीवन का एक संक्षिप्त वृत्तान्त है। शोध पर आधारित यह पुस्तक डॉ. श्यामा प्रसाद मुकर्जी के उन संघर्षों की कहानी है, जिनसे देश की राजनीति में भारतीयता से प्रेरणा लेकर एक नया विकल्प मिला, ऐसा विकल्प जो जनसंघ से शुरू होकर भारतीय जनता पार्टी के रूप में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करा रहा है।
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अपने विचारों और गुणों के कारण डॉ. मुकर्जी ने महात्मा गांधी का ध्यान आकर्षित किया। वह डॉ. मुकर्जी से इतने प्रभावित हुए कि जब 15 अगस्त, 1947 को भारत आज़ाद हुआ, तो उन्होंने पण्डित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्ववाले प्रथम मन्त्रिमण्डल में उन्हें शामिल करवाया। नेहरू के मन्त्रिमण्डल में एक मन्त्री के रूप में उन्होंने एक ऐसी अमिट छाप छोड़ी, जिसने नये स्वतन्त्र देश के औद्योगीकरण की मज़बूत नींव रखी। उन्होंने देश को तेज़ी से औद्योगीकरण की ओर ले जाने का निर्णय लिया। नेहरू के मन्त्रिमण्डल से इस्तीफ़ा देने के बाद डॉ. श्यामा प्रसाद मुकर्जी के नेतृत्व में जनसंघ की औपचारिक शुरुआत हुई और डॉ. मुकर्जी इसके पहले अध्यक्ष बने। डॉ. मुकर्जी ने 'दो विधान, दो निशान और दो प्रधान' के ख़िलाफ़ प्रजा परिषद् के सत्याग्रह का समर्थन किया। अपनी शहादत देकर उन्होंने इस मुद्दे को देश की जनता तक पहुँचाया।
—प्रस्तावना से
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