Ek Duniya Hai Asankhaya
एक दुनिया है असंख्य -
वृद्ध माँ की नींद और डेढ़ बरस की बेटी के भविष्य से लेकर ग्राहकों के लिए मुर्गे काटते आठ बरस के लड़के और बग़दाद के बमों के धमाकों में फँसी जुड़वाँ बहनों तक फैला युवा कवि सुन्दर चन्द ठाकुर की कविता का फलक क़ाफ़ी व्यापक है। उनकी कविता अतीत और वर्तमान के चौराहों को खुले और हवादार घरों की तरह देखती है और ख़ुद अपनी ही संवेदना के रूपक की तरह लगती है, जहाँ से कई रास्ते फूटते हैं, और जीवन जैसा भी हो, अच्छा या बुरा, अपने विविध और विस्मयकारी रूपों में गतिशील होता है। अपने पिछले सग्रह 'किसी रंग की छाया' (2001) से एक विशिष्ट पहचान बना चुके कवि का यह नया संग्रह उनकी काव्यात्मक संवेदना में निरन्तर आ रही विकासशीलता, परिपक्वता और बेचैनी की ओर एक सार्थक संकेत करता है। उनकी पिछली कविताओं में जो आवेग और गहरा सकारात्मक रूमान था, वह अब एक बौद्धिक साक्षात्कार की शक्ल ले चुका है और उसके सरोकार मुक्तिबोध शैली के 'ज्ञानात्मक संवेदन' तक विस्तृत हुए हैं।