Filmi Jagat Mein Ardhashati Ka Romanch
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"फ़िल्मी जगत में अर्धशती का रोमांच
प्रस्तुत कृति आत्मकथा, संस्मरण, रिपोर्ताज़ आदि का ऐसा संघटित रूप है कि एक विशिष्ट गद्य-शैली अपनी सम्पूर्ण पठनीयता के साथ स्वतः निर्मित हो जाती है। एक विधा से दूसरी विधा में गमन एक प्रयोगधर्मिता है, जिसमें हमारे समय के हिन्दी फ़िल्म संसार और साहित्य की अन्तरंग छुअन है। रोचकता, साफ़गोई और निर्भीकतापूर्वक फ़िल्मों की आत्यन्तिकता, कलात्मकता तथा धुर व्यावसायिकता की पड़ताल की गयी है। साहित्य, फ़िल्म, सामाजिकीकरण तथा आर्थिकी के अन्तर्सम्बन्धों पर गहरी टिप्पणियाँ हैं। साहित्य के शिखर पुरुषों के सिनेमाई सम्बन्धों के बारे में अधिकतर लोग नहीं जानते। इस पुस्तक में उनके क्लैसिक सन्दर्भों को उभारा गया है। हिन्दी साहित्य में फ़िल्मी जीवन व विषय को गम्भीरता से न लेने की अकारण परम्परा सी बन गयी है, जबकि उसके दुष्परिणाम ये हुए हैं कि हिन्दी सिनेमा को साहित्य के मेधावी जनों से वंचित होना पड़ा है। इस बन्धन के तनाव को अत्यन्त सूक्ष्मता, भाषाई कारीगरी तथा दृष्टि सम्पन्नता से समझने का गहरा प्रयत्न इस कृति में है। फ़िल्मों के प्रचलित मिथों पर महत्त्वपूर्ण तरीक़े का प्रथम साहित्यिक अन्तः सम्बन्धात्मक अवलोकन है, जिसमें संस्मरणों की आत्मीय प्रतिध्नितरयाँ पुनः पुनः उभरती हैं। आशा है पाठकों को यह कृति बहुत रोचक लगेगी। साथ ही, हिन्दी फ़िल्म और साहित्य सम्बन्धी नयी जानकारी वे पा सकेंगे।
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ISBN
8126308877