Galp Ka Yatharth Kathalochan Ke Aayam
गल्प का यथार्थ कथालोचन के आयाम -
हिन्दी में कथा साहित्य का जैसा अद्भुत विकास दिखाई देता है, उसकी तुलना में कथा की आलोचना का विकास नहीं हुआ है। नयी पीढ़ी के कहानीकारों की तो एक प्रमुख शिकायत ही यह है कि उनकी रचनाशीलता पर पर्याप्त विचार नहीं हो रहा है। सुवास कुमार की यह नयी आलोचना पुस्तक न केवल इस समस्या पर विचार करती है, बल्कि सैद्धान्तिक और व्यावहारिक, दोनों स्तरों पर कथालोचन के नये प्रतिमान और औज़ार भी गढ़ती है। इस सिलसिले में कथा के विधात्मक स्वरूप की खोज से शुरू कर सुवास कुमार की यात्रा आज की कथा के इन्द्रधनुषी परिदृश्य तक जाती है। बीच में अनेक महत्त्वपूर्ण पड़ाव आते हैं यथार्थवाद का यथार्थवादी प्रतिमान की प्रासंगिकता, हिन्दी कथा साहित्य का स्वभाव, परिवार-समाज-देश और मनुष्य तथा हिन्दी की महत्त्वपूर्ण कथा कृतियों पर एक नयी, चौकन्नी नज़र सुवास कुमार की आलोचनात्मक दृष्टि की सबसे बड़ी ख़ूबी है उसका खुलापन और व्यापकता। वे न किसी बाद से बँधे हुए हैं और न किसी अन्य पूर्वग्रह से। इसके बावजूद उनकी प्रतिबद्धताएँ किसी से कम गहरी नहीं हैं। सुवास कुमार की यही निर्मल और बेबाक शैली प्रेमचन्द, रेणु, परसाई, श्रीलाल शुक्ल, ज्ञानरंजन, गोविंद मिश्र आदि के कथा स्वभाव को समझने और उसका मूल्यांकन करने में प्रगट होती है। "यह सच है कि प्रेमचन्द हिन्दी कथा साहित्य के उदय-शिखर हैं, लेकिन उनके बाद भी आलोक प्रखरतर हुआ, इसमें सन्देह नहीं।" - जैसा वाक्य लिखने के लिए जिस ईमानदार साहस की ज़रूरत है, वह सुवास कुमार के इन पारदर्शी लेखों में सहज ही जगह-जगह दिखाई देता है। इसी साहस के बल पर वे कूड़े को कूड़ा कहने से भी नहीं हिचकते, इसके बावजूद कि हर नये-पुराने लेखक को उनकी पर्याप्त सहानुभूति मिली है।