Gaon Ke Naon sasurar Mor Naon Damaad
गाँव के नाँव ससुरार मोर नाँव दमाद -
छत्तीसगढ़ में शरद पूर्णिमा के दिन एक त्यौहार मनाया जाता है जिसे 'छेर छेरा' कहते हैं। इस त्यौहार के दिन नौजवान लड़के अनाज और सब्ज़ी लोगों से माँगकर जमा करते हैं और बाद में पूरा युवक समाज त्यौहार के मौके पर पिकनिक मनाता है। त्यौहार के दिन झंगलू और मंगलू गाँव के दो लड़के शान्ति और मान्ती के साथ छेड़छाड़ करते हैं। इसी बीच झंगलू को मान्ती से प्रेम हो जाता है। मान्ती का पिता इस निर्धन लड़के के बजाये एक बूढ़े मालदार सरपंच से मान्ती की शादी कर देता है। झंगलू अपने मित्रों के साथ लड़की की तलाश में निकल जाता है। लड़के देवार जाति के लोगों का वेश बदलकर सरपंच के गाँव पहुँच जाते हैं। उसे छेड़ते और तरह तरह से बेवकूफ़ बनाते हैं। इस समय गाँव में शंकर पार्वती की पूजा हो रही है जिसे 'गौरी गौरा' कहते हैं। इस संस्कार में मान्ती भी शामिल है। झंगलू इस दौरान किसी तरक़ीब से अपनी प्रेमिका को भगा ले जाता है। नाटक प्रेम की जीत के गीतों पर समाप्त होता है।