Gatha Kurukshetra Ki
गाथा कुरुक्षेत्र की -
भारतीय जातीय-स्मृति की गौरवमयी ध्वनि का नाम है महाभारत - गीता। इसी सच को आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के शब्दों में सुना जा सकता है। आचार्य द्विवेदी जी ने 'महाभारत' को उज्ज्वल चरित्रों का वन घोषित करते हुए लिखा है- 'महाभारत' को उज्ज्वल चरित्रों का वन कहा जा सकता है। वह कवि-रूपी माली का यत्नपूर्वक सँवारा उद्यान नहीं है जिसके प्रत्येक लता पुष्प वृक्ष अपने सौन्दर्य के लिए बाहरी सहायता की अपेक्षा रखते हैं, बल्कि यह अपने आप की जीवनी शक्ति से परिपूर्ण वनस्पतियों और लताओं का अयत्न परिवर्तित विशाल वन है जो अपनी उपमा आप ही है। मूल कथानक में जितने भी चरित्र हैं वे अपने आप में पूर्ण हैं। भीष्म जैसा तेजस्वी और ज्ञानी, कर्ण जैसा गम्भीर और वदान्य, द्रोण जैसा योद्धा, कुन्ती और द्रौपदी जैसी तेजीदृप्त नारियाँ, गान्धारी जैसी पतिपरायण, श्रीकृष्ण जैसा उपस्थित बुद्धि और गम्भीर तत्वदश, युधिष्ठिर जैसा सत्यपरायण, भीम जैसा मस्तमौला, अर्जुन जैसा वीर, विदुर जैसा नीतिज्ञ चरित्र अन्यत्र दुर्लभ है।' मश्जो ने भी 'गाथा कुरुक्षेत्र की' में महाभारत के इन सभी चरित्रों को उनकी सम्पूर्ण उज्ज्वलता से प्रस्तुत कर दिया है। चरित्रों के इस 'पाठ' या टैक्स्ट में अनेक अर्थों की अन्तर्ध्वनियाँ हैं और उनका अन्तर्ध्वनित सत्य है अन्याय के विरोध मं अर्जुन की तरह गांडीव उठाना, अन्यायी को ध्वस्त करना। - कृष्णदत्त पालीवाल