Golbal Samay Mein Gadya
दो दशकों से ज्यादा समय से समकालीन हिन्दी लेखन की लगातार पड़ताल करते प्रियदर्शन अपनी सहज और सन्तुलित विचार-दृष्टि और विश्लेषण पद्धति के लिए जाने जाते हैं। उनकी यह किताब ‘ग्लोबल समय में गद्य’ हिन्दी की कई, और भारतीय अंग्रेजी की कुछ, महत्त्वपूर्ण कृतियों का एक समग्र आलोचनात्मक पाठ सुलभ कराती है। आलोचना की बात चलते ही आमतौर पर जिस शुष्क, शास्त्रीय और अकादमीय किस्म की नीरस विश्लेषण पद्धति के साथ लिखे गये गद्य का ख़याल आता है, यह किताब उससे कोसों दूर है। इसे पढ़ते हुए हिन्दी के समकालीन विमर्श को कहीं ज्यादा करीब से समझा जा सकता है और कई कृतियों का कहीं बेहतर आस्वाद लिया जा सकता है। कहने को ये आलोचनात्मक आलेख हैं, लेकिन अपनी भाषा और गढ़न में ये स्वतन्त्र ललित निबन्धों की तरह भी पढ़े जा सकते हैं और इनकी मार्फत हमारे समय में साहित्य और समाज के बदलते हुए मूल्यों को भी पहचाना जा सकता है। कोई भी साहित्य समीक्षा तभी सार्थक होती है जब वह अपने समाज की भी समीक्षा बन जाए। ‘ग्लोबल समय का गद्य’ अपने पाठकों के लिए सिर्फ साहित्य नहीं, समाज को भी समझने का आईना बनती है।