Goura Gunwanti
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"गौरा गुनवन्ती' -
'गौरा गुनवन्ती' कथाकार-व्यंग्यकार सूर्यबाला का नया कहानी-संग्रह है। इस संग्रह की बारह कहानियाँ अलग-अलग पृष्ठभूमि में रची गयी हैं। कहानी में जिन रचनाकारों ने व्यंग्य का प्रमुखता से प्रयोग किया है, उनमें सूर्यबाला का नाम उल्लेखनीय है। सूर्यबाला परिवार और समाज के उन प्रश्नों/प्रसंगों को उठाती हैं जो परिचित होते हुए भी कई बार अपरिचित से बने रहते हैं। इन प्रश्नों/प्रसंगों को व्याख्यायित करते हुए सूर्यबाला अपने अनुभवों का रचनात्मक उपयोग करती हैं।
सूर्यबाला की इन कहानियों में वे विचार और विमर्श सक्रिय हैं जो आज साहित्य के केन्द्र में हैं। उल्लेखनीय यह है कि सूर्यबाला के लिए रचना एक अनिवार्य प्राथमिकता है। इसीलिए ये कहानियाँ कथारस का सम्यक निर्वाह करते हुए पाठकों के भीतर विचार की एक ज्वलन्त लकीर खींच देती हैं।
सूर्यबाला भाषा का बहुआयामी प्रयोग करना जानती हैं। व्यंग्य-विदग्ध भाषा तो उनकी पहचान है ही, अवसर आने पर गम्भीर अनुभवों को व्यक्त करने में भी वे सर्वथा सक्षम हैं। 'अठारह वर्ष बाद' कहानी में सूर्यबाला लिखती हैं, ""...अभी मैं भावना के जिस अविच्छिन्न प्रवाह में बह रही हूँ, तर्क और चिन्तन के कगार पर नहीं ठहर पाऊँगी, ममता सिर्फ़ समर्पित होती है। छोर-अछोर, दिग्देशान्तरों के असीम विस्तार तक फैली अतल गहरी अनुभूति है यह सार्वदेशिक, सार्वकालिक, सार्वभौम।"" भाषा की इन्हीं विविध छवियों से भरी 'गौरा गुनवन्ती' की कहानियाँ पाठकों को समकालीन यथार्थ से परिचित कराती हैं और उसके कई पक्षों के प्रति सचेत भी करती हैं।
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ISBN
9788126319428