Govind Mishr Srijan Ke Aayam
डॉ. चन्द्रकान्त बांदिवडेकर ने एक जगह लिखा है-
'दोयम-नियम दर्जे की पुस्तक की कमज़ोरियों को दिखाते हुए समीक्षा करने की अपेक्षा अपनी शक्ति को अच्छे साहित्य का आस्वादन / समीक्षा / मूल्यांकन में खर्च करना अधिक श्रेयस्कर है.... ।
‘यथासम्भव रचना को ही अपना सौन्दर्य, अपना मर्म प्रकट करने के लिए उसे अपने वैयक्तिक आग्रहों से मुक्त रखता हूँ। प्रयास करता हूँ कि समीक्षक का अहं रचना से न टकराए और रचनाकार के व्यक्तित्व (लौकिक) को भी बीच में न आने दिया जाय। हाँ रचनारत साहित्यकार के लेखकीय व्यक्तित्व का अन्वेषण अवश्य करता हूँ और उचित हो तो उस व्यक्ति से प्रभावित होने में भी संकोच नहीं करता...'
गोविन्द मिश्र हमारे समय के महत्वपूर्ण साहित्यकार हैं। उपर्युक्त दोनों दृष्टियों से उनके समूचे रचना संसार को आलोचनात्मक परिधि में लाना ही प्रस्तुत पुस्तक के सम्पादन में डॉ. बांदिवडेकर की प्रेरणा रही है। यहाँ न केवल गोविन्द मिश्र के नवीनतम कथासंग्रह और नौवें 'उपन्यास 'फूल... इमारतें और बन्दर' तक को समेटा गया है, कुछ हिन्दी के महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षरों जैसे शैलेश मटियानी, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, डॉ. विवेकी राय, डॉ. प्रभाकर श्रोत्रिय, राजी सेठ, निर्मल वर्मा, डॉ. परमानंद श्रीवास्तव, डॉ. पुष्पपाल सिंह आदि के आलेख सम्मिलित किये गये हैं। पुस्तक की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है हिन्दी के मूर्धन्य साहित्यकारों-जैनेन्द्र कुमार, अज्ञेय, भवानी प्रसाद मिश्र, अमृतलाल नागर, अमृत राय, निर्मल वर्मा, धर्मवीर भारती, रवीन्द्रनाथ त्यागी, गिरिराज किशोर, विद्यानिवास मिश्र, नरेश मेहता आदि की पत्र प्रतिक्रियाएँ, पाठकों की भी।
क्योंकि इन्हीं सब से किसी साहित्यकार का रचना संसार बनता है तो कह सकते हैं कि यहाँ गोविन्द मिश्र का सम्पूर्ण रचना संसार उपस्थित है।