गुरुवर बच्चन से दूर - डॉ. हरिवंशराय बच्चन पर अजितकुमार की चर्चित कृति 'कबकेसा' के बाद उसी तारतम्य में यह 'गुबसेदू' है अर्थात 'गुरुवर बच्चन से दूर'। वस्तुतः इसमें संवादों की दीर्घ श्रृंखला है गुरु-शिष्य के बीच। एक लम्बे कालखण्ड में अजितकुमार जी ने अनौपचारिक ढंग से बातचीत के सिलसिलों में उत्खनन करते हुए जिन प्रसंगों को उकेरा है उनमें ताप है, नवीनता है, अलक्षित दृश्य अर्थ हैं। स्मृतियों का एक कोलॉज है जिसमें समय की धड़कनों का सुगठित इन्दराज है। इस कृति में बच्चन जी की साफ़गोई, साहस और खुलस को जुदा ढंग से पाकर हम कुछ प्रफुल्लित होते हैं और कुछ विस्मित। अजितकुमार ने गुरुवर बच्चन के जीवन के अछूते, अनसुने अध्यायों को प्रस्तुत करने में अपनी एक शैली ईजाद की है, जो विशिष्ट और प्रशंसनीय है। पाठकों के लिए यह एक सुखद अनुभव सिद्ध होगा।
"अजितकुमार -
(पूरा नाम - अजितकुमार शंकर चौधरी)
9 जून, 1933 को लखनऊ के एक प्रतिष्ठित साहित्यिक परिवार में जन्म।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में शिक्षा पहले डी.ए.वी. कॉलेज, कानपुर (1953-56), फिर किरोड़ीमल कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय (1953-98) में अध्यापन। इसी बीच (1956-62 में) विदेश मन्त्रालय, नयी दिल्ली के हिन्दी विभाग में सेवाकार्य अब सेवानिवृत्त।
प्रकाशन: सात कविता संग्रहों के अलावा कहानी, उपन्यास, यात्रा संस्मरण, आलोचना आदि की लगभग दो दर्जन पुस्तकें प्रकाशित प्रमुख हैं। अकेले कंठ की पुकार (1958), ये फूल नहीं (1970), घरौंदा (1987), हिरनी के लिए (1993), घोंघे (1996), ऊसर (2001) ।कविता-संग्रह; अंकित होने दो (1962), विविध; छाता और चारपाई (1986)। कहानी-संग्र; छुट्टियाँ (1994)। उपन्यास; दूर वन में (1984), निकट मन में (1994) संस्मरण; सफ़री झोले में (1986), यहाँ से कहीं भी (1997) यात्रा-वृत्त; इधर की हिन्दी कविता (1959), कविता का जीवित संसार (1972)। आलोचना; कविवर बच्चन के साथ (2008) अंकन।
सम्पादन: बच्चन निकट से (संस्मरण, 1968), कविताएँ- 1954, 1963, 1964, 1965, हिन्दी की प्रतिनिधि श्रेष्ठ कविताएँ 1, 2, 3 (1952-1980), आठवें दशक की श्रेष्ठ प्रतिनिधि कविताएँ (1955 (1982), बच्चन रचनावली (1983), सुमित्रा कुमारी सिन्हा रचनावली (1990) और बच्चन के चुने हुए पत्र (2001)I
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