Hath Uthakar Barish Ne Bus Rukwai
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"नीलिम कुमार सूक्ष्म संवेदनाओं के कवि हैं। कविता का स्मृतियों से घनीभूत सम्बन्ध होता है और नीलिम कुमार की कविताएँ स्मृतियों का प्रत्येक तन्तु अपने अस्तित्व में समा लेती हैं। इनमें जहाँ अतीत में खोए कुछ अधूरे क़िस्से हैं तो कहीं किसी कविता में क़िस्सों को अधूरा भी छोड़ दिया गया है कि इस अधूरापन को पाठक अपनी कल्पना के रंगों से रंग सकें।कविता की आत्मा इतनी सक्षम होती है कि उसे स्वयं के होने को कभी साबित नहीं करना पड़ता और न ही उसे किसी गवाह की ज़रूरत होती। यह इतनी स्वतन्त्र और निष्कपट होती है कि अबोध के बोध में ही इसे आत्मसात किया जा सकता है।हाथ उठाकर बारिश ने बस रुकवाई संग्रह की कविताएँ मूलतः असमिया भाषा में लिखी गयी हैं जिनका हिन्दी अनुवाद अपनी भाषा की समर्थ कवि और लेखक अनामिका ने सहृदयता, कोमलता और इन कविताओं की करुणा को जस का तस रखकर किया है। अनुवाद कार्य एक यज्ञ समान होता है और अनामिका ने इस यज्ञ में अपने समय, मन, भाषा-ज्ञान, हार्दिकता और तकनीकी श्रम की आहुति द्वारा इसे सफल बनाया है।वाणी प्रकाशन ग्रुप यह संग्रह 'वाणी भारतीय कविता अनुवाद शृंखला' के अन्तर्गत प्रकाशित कर भारतीय भाषाओं में एक सेतु का निर्माण करते हुए प्रसन्न व गौरवान्वित है।
जब दो सभ्यताएँ एक-दूसरे से संवाद साधती हैं, अनुवाद के आसरे ही! कुछ देर तो खींचा-तानी चलती है फिर प्रीतिकलह के दौरान जो आदान-प्रदान घटता है उसे समझा जा सकता है 'गीतगोविन्द' के उस प्रसंग के आश्रय जहाँ रास के बाद राधा गोविन्द के कपड़ों में बैठी हैं, गोविन्द राधा के परिधान में! यही प्रसंग अमीर खुसरो में यहाँ कुछ यों गूँजता है-’छाप तिलक सब छीनी रेमोसे नैना मिलाय के, अपने ही रंग रंग लीनी रे,मोसे नैना मिलाय के ।’नैना मिलाती जब दो सभ्यताएँ आमने-सामने खड़ी होती हैं, 'अपने ही रंग रंग लीनी रे', वाला सवाल सिर्फ़ जेमनी का सवाल या 'कॉलोनियला इजेशन ऑफ़ माइंड' का सवाल नहीं रहता-कहीं भीतर कुछ एक- दूसरे को छू भी जाता है और प्रमुदित समर्पण की स्थिति भी घटती है। दोनों भाषिक संस्कृतियों के भीतर कुछ सहज खिलता है, दृष्टि दोनों की बड़ी होती है।आदर्श स्थिति तो किसी भी रिश्ते की यही होती है। कि कोई किसी पर हावी न हो, संवाद के दौरान कुछ ऐसा घट जाये कि अपने ही भीतर नयी खिड़कियाँ खुलें और पाठक रचयिता भी हो जाये -अर्थ का सह-प्रस्तोता ।"
ISBN
9789355180698