Hatyara Tatha Anya Kahaniyan
हत्यारा तथा अन्य कहानियाँ -
इसवी सदी के भारत की कहानी महाशक्ति बनने की राजनीतिक महत्वाकांक्षा की कहानी भर नहीं है, वह भूमण्डलीकरण की आँधी में भारत की सामाजिकता के बिखरने की कहानी भी है। यह गाँवों और शहरों के छूटते मकानों में पड़े लाचार बूढ़ों और उदारीकरण की चमक-दमक में महानगरों और समन्दर पार जा बसे उन युवाओं की कहानी भी है जो अपनी जड़ों से दूर हैं और बहुत सारे जख़्मों से भरे हैं। यह साम्प्रदायिकता के बड़े होते राक्षस की कहानी भी है और उन परिकथाओं के खोखलेपन की भी, जिनमें कई तरह के भ्रम और मिथक सत्य की तरह प्रस्तुत किये जा रहे हैं। इस संग्रह की कहानियाँ दरअसल इसी भारत को पहचानने और पकड़ने के उद्यम से बनी हैं। लेकिन ये राजनीतिक या समाजशास्त्रीय नहीं, बिल्कुल मानवीय कहानियाँ हैं जिनमें एक करुण निगाह फिर भी उस मनुष्यता की शिनाख़्त करने की कोशिश में है जो अन्ततः सारी चोट के बावजूद बची रहती है। ये बहुत निराशाजनक स्थितियों के बीच लिखी गयी कहानियाँ हैं, लेकिन निराशा से भरी नहीं। ये कहानियाँ जैसे एक रोशनी लेकर किसी सुरंग में दाख़िल होती हैं और अपने किरदारों से मिलती हैं। ये कहानियाँ उन स्त्रियों के पते खोजती हैं जो इस नये समय में अपनी अस्मिता को लेकर सबसे तीख़े संघर्ष के दौर में हैं और इसकी पहचान या मान्यता के लिए दूसरों पर अपनी निर्भरता बिल्कुल ख़त्म कर चुकी हैं। ये एक वायरस से लड़ते-लड़ते दूसरे वायरसों की पहचान की भी कहानियाँ हैं। ये ताक़त के मुरीद हमारे समय में उन कमज़ोर लोगों की कहानियाँ हैं जो बेबसी से पा रहे हैं कि उनके हिस्से सिर्फ़ अँधेरे आ रहे हैं। बहुत सादा शिल्प और बहुत संवेदनशील भाषा के बीच रची गयी ये कहानियाँ लेकिन अन्ततः उस इन्सानी सरोकार की कहानियाँ हैं जो चाहे जितना भी छीज रहा हो, लेकिन दम तोड़ने को तैयार नहीं है। भरोसा कर सकते हैं कि यह संग्रह अपने पाठकों को अपने साथ भी लेगा और आगे भी ले जायेगा। पाठक यह महसूस करेंगे कि दरअसल यह उनकी कहानियाँ हैं जो उनके हालात और सोच को चुनौती भी दे रही हैं और बदल भी रही हैं—इन कहानियों के आईने में वे अपने-आप को नये सिरे से पहचान पायेंगे।
ये कहानियाँ पढ़ने वाले इन्हें भूल नहीं जायेंगे, बल्कि पायेंगे कि ये कहानियाँ उनकी अपनी कहानियाँ भी बन रही हैं, बना रही हैं।