Hindi Bhasha Chintan

In stock
Only %1 left
SKU
9788181439888
Rating:
0%
As low as ₹380.00 Regular Price ₹400.00
Save 5%

हिन्दी भाषा चिन्तन - 
हिन्दी भाषा के रचनाकारों, पोषकों, अनुवादकों (चाहे वे किसी प्रान्त या क्षेत्र के हों) ने हिन्दी भाषा के भीतर विशाल जन-जीवन की आत्मा से बराबर तालमेल बनाये रखा है। इनको अब हिन्दी व्याकरण में उकेरना होगा। बनावटी, अनुवाद आश्रित, जन सम्पर्क से दूर होती जा रही सामर्थ्यहीन हिन्दी का तिरस्कार करना भी इस व्याकरण के लिए ज़रूरी होगा। भाषा की शुद्धता या मानकता की ईदे कर हिन्दी भाषा के स्वाभाविक विकास और प्रयोग को; कहा जाय उसकी लचीली प्रकृति या ग्रहणवादी प्रवृत्ति की आलोचना करने वाले शुद्धतावादियों से सावधान रहे बिना और भाषा सम्पर्क एवं भाषा- विकास की स्वाभाविक व्याकरणिक परिणतियों का संकेत दिये बिना हिन्दी व्याकरण की परतों (संलमते) को नहीं टटोला सकता है। हिन्दी भाषा मात्र, 'एक' व्याकरणिक व्यवस्था नहीं है, वह हिन्दी भाषा समुदाय में व्यवस्थाओं की व्यवस्था के रूप में प्रचलित और प्रयुक्त है; इस तथ्य के प्रकाश में निर्मित हिन्दी व्याकरण ही भाषा के उन उपेक्षित धरातलों पर विचार कर सकेगा जो वास्तव में भाषा प्रयोक्ता के 'भाषाई कोश' की धरोहर हैं। कोई भी जीवन्त शब्द और जीवन्त भाषा एक नदी की तरह विभिन्न क्षेत्रों से गुज़रती और अनेक रंग-गन्ध वाली मिट्टी को समेटती आगे बढ़ती है। हिन्दी भी एक ऐसी ही जीती जागती भाषा है। इसके व्यावहारिक विकल्पों को व्याकरण में उभारना, यही एक तरीका है कि हम हिन्दी को उसकी राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय भूमिका में आगे ले जा सकते हैं।

ISBN
9788181439888
sfasdfsdfadsdsf
Write Your Own Review
You're reviewing:Hindi Bhasha Chintan
Your Rating
Copyright © 2025 Vani Prakashan Books. All Rights Reserved.

Design & Developed by: https://octagontechs.com/