Hindi Bhasha Itihas Aur Swaroop
हिन्दी भाषा इतिहास और स्वरूप -
भाषा बनायी नहीं जाती, वह स्वयं अपनी प्रकृति के अनुरूप बनती बिगड़ती अपना स्वरूप निर्धारित करती चलती है। हिन्दी इस कथन की साक्षी है। हिन्दी की समृद्धि सरकारी प्रयास या शासन सत्ता के सहयोग का प्रतिफल नहीं है अपितु वह उसकी अन्तःस्रोतस्विनी समृद्ध सलिला के माधुर्य राग की अनुगूँज की परिणति है। उसे किसी राज्याश्रय की आवश्यकता नहीं। वह परमुखापेक्षी भी नहीं। उसे बैसाखियों की भी आवश्यकता नहीं। वह तो जन का वह राग है, वह गान है जिसे सन्तों, भक्तों ने गाया। समाज सुधारकों ने जिसका सहारा लिया और राष्ट्र की अस्मिता, राष्ट्रीय अखण्डता तथा एकता की अभेद्य पर जीवन्त, सरस वह शिला है जिसकी ठोस आधार भूमि का सहारा लेकर राजनेताओं ने स्वाधीनता संग्राम का नेतृत्व किया। और आज यही हिन्दी हज़ारों लेखकों और बहुसंख्य भारतीयों की अभिव्यक्ति और अनुभूति का माध्यम है। एक बात और आज रोजगार के अनेक अवसर हिन्दी ज्ञान के मुखापेक्षी हैं।
प्रस्तुत पुस्तक में हिन्दी का भाषा रूप में क्रमिक विकास, उसके बनते बिगड़ते रूप, विभिन्न काव्य-भाषात्मक स्थितियों और उसके वर्तमान स्वरूप के रेखाकंन के साथ-साथ भाषा वैज्ञानिक पद्धति से विभिन्न भाषिक पक्षों का विवेचन विश्लेषण और वैशिष्ट्य का उद्घाटन प्रस्तुत है।
मेरे इस प्रयास पथ का पाथेय है भारतेन्दु की वह संवेदना और उद्घोषणा जो मुझे निरन्तर आन्दोलित और कुछ कर गुज़रने के लिए प्रेरित करती है:
'निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय को शूल।'