Hindi Kavya Samiksha Ke Pratiman
हिन्दी काव्य समीक्षा के प्रतिमान -
हिन्दी की प्रगतिवादी समीक्षा की सबसे महत्त्वपूर्ण उपलब्धि कविता तथा साहित्य के स्वरूप सम्बन्धी उसकी मानवीय और लौकिक व्याख्या है। प्रगतिवादी समीक्षकों ने पहली बार कविता तथा साहित्य को विशुद्ध मानवीय उपलब्धियों के रूप में स्वीकार करते हुए उनका मूल्यांकन और विवेचन किया है।
परन्तु हिन्दी की प्रगतिवादी समीक्षा अपनी प्रामाणिकता सिद्ध नहीं कर सकी है। उसके अन्तर्गत बुनियादी सिद्धान्तों को लेकर ही समीक्षकों के बीच मतभेद दिखाई देता है। सभी अपने दृष्टिकोण के खरेपन का दावा करते हैं; किन्तु, यह स्पष्ट नहीं हो पाता कि सही और प्रामाणिक दृष्टि किसकी है। उदाहरण के लिए जहाँ रामविलास शर्मा गोस्वामी तुलसीदास के महत्त्व का पूरे विश्वास के साथ आख्यान करते हुए उन्हें सर्वोच्च कवि का आसन देते हैं, वहाँ रांगेय राघव और मुक्तिबोध उनके सम्बन्ध में इस प्रकार का मत ज्ञापित करते हैं कि वे सामन्ती आदर्शों के पोषक थे। राहुल सांकृत्यायन कालिदास को गुप्त सम्राटों का चाटुकार कहते हैं। रामविलास शर्मा अज्ञेय को असामाजिक व्यक्तिवादी और प्रतिक्रियावादी घोषित करे हैं; जबकि शिवदानसिंह चौहान उनके 'शेखर : एक जीवनी' उपन्यास को विश्व स्तर की उपलब्धि मानते हैं।
प्रयोगवादी समीक्षा पर व्यक्तिवादिता को प्रश्रय देने, नैतिक मूल्यों की अवहेलना करने, कोरे सौन्दर्यशास्त्रीय दृष्टि को अपनाने जैसे आरोप लगाए गये हैं। गहराई से विचार करने पर ये आरोप सर्वांशतः सिद्ध नहीं होते। समग्रतः प्रयोगवादी समीक्षा की विशिष्ट उपलब्धि इस एक बात में देखी जा सकती है कि उसमें प्रगतिवादी समीक्षा द्वारा प्रस्तुत प्रतिमानों पर अंकुश लगाकर स्वस्थ तथा सन्तुलित काव्य-समीक्षा की आवश्यकता के प्रति एक बार पुनः ध्यान आकर्षित किया।
(इसी पुस्तक से)