Hindi Ki Prakriti Aur Shuddh Prayog
हिन्दी की प्रकृति और शुद्ध प्रयोग -
किसी भाषा में आने वाले 'विकार' ही उसकी विकास यात्रा के पड़ाव निर्धारित करते हैं। समय, स्थान और कार्यविधि ही इसके निर्णायक तत्त्व हैं। इन सभी का मूलाधार है- 'मनुष्य', जो कि एक सामाजिक प्राणी है।
प्रकृति का वह अदम्य साहसी जीव 'मनुष्य', जो वन मानव से सभ्य मानव और एक सूझ-बूझ वाला इन्सान बना है। मानव के विचारों को वहन करने वाली "भाषा" व्यक्ति विशेष के चिन्तन शक्ति एवं लेखन प्रणाली द्वारा अपनी 'प्रकृति को विविध परिस्थितियों तथा अनेकरूप वातावरण में सिंगारती-सँवारती है। हिन्दी की प्रकृति की रामकहानी भी इसी अजस्र प्रवाह की एक वेगवती धारा है।
हिन्दी भाषा की प्रकृति के इसी बनते-सँवरते रूप को हमने अपने बुद्धि-विवेक से बोधगम्य करवाने का यथासम्भव प्रयास किया है। हम अपने पूर्ववर्ती और समकालीन भाषाविदों के प्रति आभारी हैं, जिनके भाषा विषयक सिद्धान्त हमारा मार्गदर्शन करते रहे हैं।