Hindi Mein Hum
हिन्दी में हम -
यह किताब हिन्दी भाषा के अस्तित्व और उसकी राजनीतिक व् सांस्कृतिक चेतना को परखते हुए हमें यकायक एक बहस में ले जाती है जो समाज के लगातार बदलते स्वरुप की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करती हैI समाज बदला क्योंकि उसकी भाषा ने भी परिवर्तन को अपनायाI भाषा के विस्तार ने एक नया प्रश्न यह खड़ा किया की इसे राजभाषा और सम्पर्क भाषा का रुतबा कब और कैसे मिला यह एक ग़ौर करने वाली बात हैI हमारे देश में हिन्दी भाषा के कई उतार-चढ़ाव रहे जो भारतीय आधुनिकता की पेचीदा राजनीति में दिखाई देता हैI
गाँधी ने भारतीयता के परिप्रेक्ष्य में हिन्दी भाषा को जिस तरह से परिभाषित किया है उसका अर्थ यह था कि यह एक सम्पर्क भाषा है जो सम्पूर्ण भारतीय मानस को एक सूत्र में पिरोती हैI गाँधी की वही हिन्दी आज एक अलग मुक़ाम पर पहुँच चुकी है जैसे वह जता रही हो कि वह संस्कृत की बेटी, या उर्दू की दुश्मन, या अंग्रेज़ी की चेरी नहीं है। अगर वह किसी की बेटी है तो भारतीय आधुनिकता की बेटी है।