Hindi Prayog Ek Shaikshik Vyakaran
हिन्दी प्रयोग : एक शैक्षिक व्याकरण -
हिन्दी का गठनात्मक स्वरूप, जैसा वह सामान्य रूप से व्यवहृत हिन्दी में प्रकट होता है, वे कारक जो हिन्दी के इस स्वरूप को प्रभावित और नियन्त्रित करते हैं तथा विविध प्रायोगिक रूपों का सम्प्रेष्य पक्ष "हिन्दी प्रयोग एक शैक्षिक व्याकरण" की मुख्य विषय-वस्तु है। मुहावरे की प्रायिकता इस अध्ययन का आधार है। अतः हिन्दी के भाषाई गठन सम्बन्धी जो भी सिद्धान्त, नियम, प्रतिमान आदि यहाँ प्रकट हुए हैं, वे सभी औसत हिन्दी भाषी द्वारा व्यवहृत हिन्दी के सम-सामयिक स्वरूप और जीवंत मुहावरे की प्रायिकता में से ही प्रकट हुए हैं।
"हिन्दी प्रयोगः एक शैक्षिक व्याकरण" में व्याकरण तुला और भाषा तुल्य नहीं है और न उसकी कोई अलग और विशिष्ट सत्ता है। उसका काम यह नहीं है कि वह उपज को केवल तौले, अलग-अलग ढेरियाँ लगाये, व्याख्या करे और नामकरण कर छोड़ दे। तौलना, विभिन्न व्याकरणिक कोटियों में वर्गीकृत करना अथवा परिभाषाओं में बाँधना उसका विषय नहीं है। 'हिन्दी प्रयोगः एक शैक्षिक व्याकरण' का सरोकार है हिन्दी के व्यापक व्यावहारिक फैलाव में से उसकी संरचना के अधिमान्य गठनात्मक सिद्धान्त खोज निकालना, हर प्रायोगिक प्ररूप की सम्प्रेषण क्षमता को रेखांकित करना और सर्वाधिक प्रायिक भाषाई व्यवहार का पता लगाकर उसके ऐसे रूप को स्थिर करना, जिसे राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय व्यवहार के लिए हिन्दी का सम्पर्क-भाषा-रूप और तकनीकी उपयोग कि लिए हिन्दी का मानक भाषा-रूप माना जा सके और जिसे हिन्दी सीखने के इच्छुक सभी अहिन्दी भाषी भारतीय और गैर भारतीय, एक जैसे रूप में और एक जैसे गठनात्मक नियमों के अधीन अर्जित कर सकें।