Itihas Darshan
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"भारत के सन्दर्भ में साम्राज्यवाद का अध्ययन ख़ासतौर से आवश्यक था। राहुल जी में उसका अभाव है, इसलिए साम्राज्यविरोधी क्रान्ति के बिना वह भारत में समाजवादी व्यवस्था का स्वप्न देखते हैं। मार्क्सवाद में जातीय समस्या का विस्तृत विवेचन है। उससे लाभ उठाकर राहुल जी भारत की जातीय समस्या को समझने का प्रयत्न नहीं करते। वह पाकिस्तान के सवाल पर धर्म को भाषा और संस्कृति से ऊपर रखते हैं, भारत की जातीय संस्कृतियों को वह हिन्दू संस्कृति, मुस्लिम संस्कृति इन दो भागों में बाँट देते हैं। सभी जातियों की एकता जनवादी क्रान्ति के लिए आवश्यक है, यह धारणा उनकी आँखों से ओझल रहती है।
दर्शन का इतिहास वह यूनान से आरम्भ करते हैं। भारत के दर्शन को वह धर्म से सम्बद्ध करते हैं; यूरुप दर्शन को उससे मुक्त रखते हैं। भारतीय दर्शन को वह नवीं सदी से समाप्त कर देते हैं; यूरुप का दर्शन वह बीसवीं सदी तक ले आते हैं। यूरुप से जो सबसे घटिया बात उन्होंने सीखी है, वह शुद्ध रक्त और शुद्ध वर्ण का सिद्धान्त है। उनकी कल्पना में यूरुपवालों ने भारत को दो बार जीता-एक बार वैदिक आर्यों के आक्रमण के समय, दूसरी बार अंग्रेज़ों के आक्रमण के समय । दूसरे आक्रमण की अपेक्षा वह पहलेवाले पर ध्यान ज़्यादा केन्द्रित करते हैं।
जनवादी क्रान्ति को वह पार्श्वभूमि में ठेल देते हैं; केन्द्रभूमि में ले आते हैं सांस्कृतिक क्रान्ति को । इस क्रान्ति में वह ईश्वरवाद के खण्डन को बहुत महत्त्वपूर्ण मानते हैं। इस सम्बन्ध में उन्होंने मार्क्स के लेखन का अध्ययन नहीं किया। एंगेल्स ने ईसाइयत के अभ्युदय काल के बारे में लिखा था : “प्रारम्भिक ईसाइयों और सोशलिस्टों में यह बात सामान्य है कि जिस दुनिया से वे लड़ने चले हैं, वह शुरू में उनसे अधिक शक्तिशाली है, इसके साथ ही वह नये पन्थ पर चलने वालों के विरुद्ध भी है। इन दो महान् आन्दोलनों में से कोई भी नेताओं या भविष्यवक्ताओं द्वारा निर्मित न हुआ था-यद्यपि उनमें भविष्यवक्ताओं की कमी नहीं है; वे जन-आन्दोलन थे।"" ईसाइयतवाले जन-आन्दोलन के प्रमुख कार्यकर्ता ईश्वरवादी थे। ईश्वर में विश्वास करने से ही मनुष्य प्रतिक्रियावादी नहीं हो जाता। जाकी रही भावना जैसी, इस भावना को देखना चाहिए। सामन्तों और पुरोहितों की भावना तथा किसानों और कारीगरों की भावना में फ़र्क़ होता है। धर्म को उसके ऐतिहासिक विकास-क्रम में देखना चाहिए । राहुल जी ने ईश्वरवाद का जो विरोध किया है, वह जनता को शिक्षित करने वाला नहीं, उसे मार्क्सवाद से दूर ले जाने वाला है।"
ISBN
9788170553717