Jagah Jaisi Jagah
जगह जैसी जगह -
कविता लिखने के ढंग अनगिनत है पर जिस तरह की कविता हेमन्त शेष लिखते हैं वह बहुत सारे 'बाहर' की औपचारिक आक्रान्ति न होकर आत्मा के भीतर जाने वाले रास्तों की खोज है, गहरी आत्माकुलता और अर्थगर्भी विकलता को काव्याशयों में बदलने वाली कोशिश। दूसरे समकालीन कवियों से यहाँ उनका कवि अपनी इस वैचारिक मौलिकता के कारण अनूठा है कि जिन पर आमतौर पर हमारा ध्यान ही नहीं जाता वैसी जानी पहचानी चीज़ों और आसपास के रोज़मर्रा दृश्यों में भी वह जीवन के सत्य तलाश लेता है।
इधर की कविता में दुर्भाग्यवश जो बहुतेरे अनुभव अनुपस्थित हैं उन विषयों पर भी लिखने की उनकी इच्छाशक्ति और प्राथमिकता कविचित्त की अदम्य स्वाधीनता का उद्घोष है। कालबोध के बहुत से नये आयाम हेमन्त शेष की काव्य यात्रा में देखे गये हैं और तुरन्त ही ध्यान खींच सकने वाला उनका यह मूलतः दार्शनिक भावबोध कालचेतना के आधुनिक आशयों का कुछ ऐसा रससिक्त-सन्धान है जहाँ प्रकृति के कई रंग हैं; प्रतीक्षा, विनोद, विरह और प्रेम की कई छटाएँ हैं; निधन, उदासी, हर्ष, विषाद, करुणा, खेद, उल्लास के स्वर हैं : जो कविता के लिए निहायत मौलिक जगह उत्पन्न कर पाने के उपक्रम के रूप में देखे सुने गुने जा सकते हैं।