Jankipul
In stock
Only %1 left
SKU
9788126317585
As low as
₹114.00
Regular Price
₹120.00
Save 5%
"जानकीपुल -
कथाकार प्रभात रंजन का यह पहला कहानी संग्रह है, बावजूद इसके इन कहानियों में न तो अनगढ़ता है न अपरिपक्वता, बल्कि आज की वास्तविकता के प्रति एक वयस्क व्यंग्यबोध है।
इन कहानियों के केन्द्र में आज का युवा समुदाय है जो अक्सर छोटे क़स्बों से महानगरों की ओर उच्चशिक्षा या रोज़गार की तलाश में आया है। एक विशेषता यह है कि ये हिन्दी के नयी कहानी के दौर की तरह महानगरों की विडम्बनाओं को चिह्नित नहीं करती न उनको केवल खोई हुई दिशाएँ दिखाती हैं, बल्कि ये बार-बार लौटकर क़स्बों या छोटे शहरों पर ही अपने को केन्द्रित करती हैं। शायद आज महानगरों से अधिक विडम्बनाओं और विद्रूपताओं का बड़ा खेल इन छोटे शहरों में खेला जा रहा है चाहे वह शिक्षा या संस्कृति के स्तर पर हो या राजनीति के, इसी कारण अधिकांश कहानियों का लोकेल एक जैसा है, लेकिन इनमें एकरसता नहीं है। हो सकता है, कुछ कहानियों में कनुप्रिया-सी रोमानियत नज़र आये क्योंकि वहाँ किशोरावस्था के कच्चेपन का चित्रण है, और जल्द ही कहानीकार उसका भी मखौल उड़ाता हुआ ठोस यथार्थ के धरातल पर लौट आता है। उनका मोहभंग भी पृथक् क़िस्म का है। वह बाहर की वास्तविकता से नहीं, अपने से होता है।
'जानकीपुल' की कई कहानियों के युवा चरित्र अपनी अफलातूनी तलाश में राजनीति की ओर भागते हैं; क्योंकि वही आज भटकने का सबसे सुगम ज़रिया है या शायद एक हद तक उपलब्धि का भी। किन्तु यह उपलब्धि इतनी खोखली और अल्पजीवी होती है कि उनका अन्त एक आत्मघाती विनाश में ही होता है। संग्रह की फ्लैशबैक जैसी कहानियाँ इसी सच को रेखांकित करती हैं। कथा के स्तर पर लेखक की एक बड़ी उपलब्धि है यह संग्रह 'जानकीपुल'।—डॉ. विजयमोहन सिंह
"
ISBN
9788126317585