Janvijay
जन विजय -
वरिष्ठ रंगकर्मी अजित पुष्कल का नाटक 'जन विजय' इतिहास शोध, विचार, संवेदना और भावसत्ता का एक समकालीन संस्करण है। यह नाटक अतीत को वर्तमान तक लाने का रचनात्मक उपक्रम है। 'बुद्ध कथा', 'बुद्ध चर्या', 'जातक कथाएँ', 'बुद्धवाणी' और 'बोधिवृक्ष की छाया में' इत्यादि ग्रन्थों का अध्ययन करते हुए अजित पुष्कल ने 'जन विजय' की कथावस्तु के सूत्र सहेजे हैं। इन सूत्रों को उन्होंने अपनी रचनाशीलता से एक नाट्याकार प्रदान किया है। 'जन विजय' वस्तुतः इतिहास बोध और समकालीन जीवन-विवेक का मणिकांचन संयोग है।
'महापरिनिर्वाण' सूत्र में उल्लेख के अनुसार भगवान बुद्ध ने सात 'अपरिहाणीय धम्मो' से संचालित वैशाली गणतन्त्र की प्रशंसा की है। इन सूत्रों के निहितार्थ बहुत गहरे हैं और आज भी प्रासंगिक हैं। इस बात की पुष्टि इतिहास से भी होती है कि वैशाली में समतामूलक समाज था जो अपने गणतन्त्र की रक्षा कर रहा था। यथा न्याय सुनिश्चित करने के लिए एक से अधिक न्यायकर्ताओं का होना। परिषद् की सहायता से बारी-बारी से कई राजाओं का राज करना। सामूहिक खेती करना। भयमुक्त होकर युवक युवतियों का कला में संलग्न होना। किन्तु राजतन्त्र अपने राज्य विस्तार के लिए गणतन्त्र को छिन्न-भिन्न भी करते रहते थे। जैसा कि मगध सम्राट अजातशत्रु ने अपने महामात्य वर्षकार के सहयोग से वैशाली गणतन्त्र को तोड़ने के लिए कूटनीति की और युद्ध की भूमिका रची। इस घटना का उल्लेख बौद्ध साहित्य एवं इतिहास में है। युद्ध को लेकर इतिहासकारों में मतभेद है। एक पक्ष यह कि युद्ध हुआ और वैशाली का गणतन्त्र ध्वस्त हुआ। दूसरा पक्ष यह कि युद्ध नहीं हो सका। ऐसी स्थिति में नाटक का अन्त युद्ध को रोकने के लिए जनप्रतिरोध के रूप में किया गया है।
अपनी अन्तिम निष्पत्ति में 'जन विजय' सामान्य मनुष्य के नैतिक आत्मविश्वास का उद्घोष है।