Jeevan Path Ke Rahee
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जीवन पथ के राही -
न तो मैं जन्मजात कहानी लेखक हूँ और न वातावरण ही ऐसा मिला कि कहानीकार के साँचे में निज को ढाल सकता।
-कवि इन्द्र बहादुर खरे, 1941
वह रात महाकाल की रात थी। शून्य में हज़ारों अर्थियाँ निकल रही हैं। सभी मरघट पथ पर चल रहे हैं। आसमान दिन में होली खेलता है और रात में दिवाली। द्रौपदी का चीर न बचाओगे। फूलो की आत्मा रोती है, इसलिए वह समाधि फट जाती है।
-जीवन-पथ के राही
एक ओर मेघदूत दूसरी ओर उमर खैयाम के चित्र गौतम-गाँधी के मॉडल के साथ... एक डाल चार हैं पत्तियाँ और चिड़ियाँ।
-नीड़ का स्वप्न
अस्ताचल पर ऊँघते हुए सूर्य का चित्र बना रहे थे... गाँव की अमा को पूर्णिमा बना दिया, थाली में घी के दीप जला... बुढ़िया के कंठ में प्राण आ गये। बुढ़िया हतबुद्धि हो गयी।
-मन के सपने
ISBN
9789350722329