Publisher:
Bharatiya Jnanpith

Jimandhara- Jina-Chariu

In stock
Only %1 left
SKU
Jimandhara- Jina-Chariu
Rating:
0%
As low as ₹270.75 Regular Price ₹285.00
Save 5%

जिमंधर-जिण-चरिउ
जिमंधर-जिन-चरिउ महाकवि रइधू (15वीं सदी) द्वारा लिखित विशालतम कृतियों में से एक महत्त्वपूर्ण कृति है। अपभ्रंश भाषा में इस नाम की यह प्रथम रचना है। इसमें तेरह सन्धियाँ अर्थात् अध्याय हैं तथा कुल 291 कडवक (छन्द) हैं।
उक्त ग्रन्थ की प्रशस्ति से विदित होता है कि कवि रइधू ने यह ग्रन्थ श्रावक कुन्थुदास की प्रेरणा से लिखा था। कुन्थुदास लक्षाधिपति था, फिर भी उसने अपनी सम्पत्ति को तुच्छ समझा था। भगवान की वाणी को वह निरन्तर सर्वोपरि मानता रहा। अतः उसने अपने बाएँ कान में स्वर्ण कुण्डल न पहिन कर "कौमुदी कथा प्रबन्ध" रूपी कुण्डल और माथे पर "त्रिषष्ठि-महापुराण" रूपी मुकुट धारण किया था। उसका दायाँ कान अभी तक सूना सूना ही था। अतः "जिमंधर चरिउ" कुण्डल अपने उसी दाएँ कान में धारण कर उसने अपना जीवन कृतार्थ माना था।

उक्त जिमंधर चरिउ का अपर नाम "सोलह-कारण-व्रत-विधान काव्य" भी है। क्योंकि इसमें दर्शनविशुद्धि, विनय सम्पन्नता, शील आदि सोलह भावनाओं का रोचक एवं सरस वर्णन है। महाकवि रइधू ने इन भावनाओं के वर्णनों में प्रसंगवश अनेक नैतिक कथाओं का वर्णन कर उन्हें अत्यन्त रोचक एवं प्रेरक बना दिया है। यह ग्रन्थ अभी तक अप्रकाशित है।

ISBN
Jimandhara- Jina-Chariu
Publisher:
Bharatiya Jnanpith
More Information
Publication Bharatiya Jnanpith
sfasdfsdfadsdsf
Write Your Own Review
You're reviewing:Jimandhara- Jina-Chariu
Your Rating
Copyright © 2025 Vani Prakashan Books. All Rights Reserved.

Design & Developed by: https://octagontechs.com/