Jugalbandi

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"संगीत में जुगलबन्दी का जादू सर चढ़कर बोलता है। जब मैं अनुवाद पर सोचती हूँ तब मुझे अनुवाद के लिए यही शब्द सबसे सार्थक लगता है। अनुवाद लेखक और अनुवादक के बीच की जुगलबन्दी है...मैत्रीपूर्ण प्रतिस्पर्धा! मूल और अनूदित रचनाएँ–दोनों स्वतन्त्र सर्जनात्मक कृतियाँ हैं, जिनकी साहित्य की दुनिया में अपनी-अपनी जगह है। जुगलबन्दी की तरह साथ-साथ और स्वतन्त्र! अनुवाद करना मेरे लिए अपने भीतर के कवि से संवाद करने जैसा है। प्रस्तुत पुस्तक में, अंग्रेज़ी की समकालीन अट्ठारह स्त्री-कवियों के परिचय और अनुवाद हैं। जिन कवियों का चयन किया गया, वे अपनी संवेदना, शिल्प और सामाजिक दृष्टि में एकदूसरे से भिन्न हैं; उनकी सामाजिक परिस्थितियाँ अलग हैं; भौतिक उपस्थिति देश-दुनिया के विभिन्न हिस्सों तक विस्तृत है—इस तरह जो विविधवर्णी संकलन तैयार हुआ उसके माध्यम से हमारे सामने समकालीन अंग्रेज़ी स्त्री-कविता की पूरी तस्वीर बनती है। इन कविताओं में हिन्दी और अंग्रेज़ी प्रतिद्वन्द्वी भाषाएँ नहीं हैं। उनके ऊपर औपनिवेशिकता का भी कोई दबाव नहीं बल्कि जैसे दो अन्य भारतीय भाषाएँ एक ही संस्कृति, एक ही भाव को अपने में समेटे हुए एक-दूसरे के अगल-बगल खड़ी नज़र आती हैं, वैसे ही यहाँ हिन्दी-अंग्रेज़ी जुगलबन्दी में हैं। जैसे प्रिज़्म से गुज़रती रोशनी अनेक रश्मियों में बिखर जाती है, वैसे ही इस संकलन से गुज़रते हुए पाठक को कविता के कई फॉर्म, कई रूप, कई भाव-बोध एक साथ देखने को मिलेंगे; जो रोचक होंगे और विस्तृत भी; इसी विश्वास के साथ... "
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9789369442287
"संगीत में जुगलबन्दी का जादू सर चढ़कर बोलता है। जब मैं अनुवाद पर सोचती हूँ तब मुझे अनुवाद के लिए यही शब्द सबसे सार्थक लगता है। अनुवाद लेखक और अनुवादक के बीच की जुगलबन्दी है...मैत्रीपूर्ण प्रतिस्पर्धा! मूल और अनूदित रचनाएँ–दोनों स्वतन्त्र सर्जनात्मक कृतियाँ हैं, जिनकी साहित्य की दुनिया में अपनी-अपनी जगह है। जुगलबन्दी की तरह साथ-साथ और स्वतन्त्र! अनुवाद करना मेरे लिए अपने भीतर के कवि से संवाद करने जैसा है। प्रस्तुत पुस्तक में, अंग्रेज़ी की समकालीन अट्ठारह स्त्री-कवियों के परिचय और अनुवाद हैं। जिन कवियों का चयन किया गया, वे अपनी संवेदना, शिल्प और सामाजिक दृष्टि में एकदूसरे से भिन्न हैं; उनकी सामाजिक परिस्थितियाँ अलग हैं; भौतिक उपस्थिति देश-दुनिया के विभिन्न हिस्सों तक विस्तृत है—इस तरह जो विविधवर्णी संकलन तैयार हुआ उसके माध्यम से हमारे सामने समकालीन अंग्रेज़ी स्त्री-कविता की पूरी तस्वीर बनती है। इन कविताओं में हिन्दी और अंग्रेज़ी प्रतिद्वन्द्वी भाषाएँ नहीं हैं। उनके ऊपर औपनिवेशिकता का भी कोई दबाव नहीं बल्कि जैसे दो अन्य भारतीय भाषाएँ एक ही संस्कृति, एक ही भाव को अपने में समेटे हुए एक-दूसरे के अगल-बगल खड़ी नज़र आती हैं, वैसे ही यहाँ हिन्दी-अंग्रेज़ी जुगलबन्दी में हैं। जैसे प्रिज़्म से गुज़रती रोशनी अनेक रश्मियों में बिखर जाती है, वैसे ही इस संकलन से गुज़रते हुए पाठक को कविता के कई फॉर्म, कई रूप, कई भाव-बोध एक साथ देखने को मिलेंगे; जो रोचक होंगे और विस्तृत भी; इसी विश्वास के साथ... "
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