Publisher:
Vani Prakashan

Kaal Kothri (Swadesh Deepak)

In stock
Only %1 left
SKU
Kaal Kothri (Swadesh Deepak)
Rating:
0%
As low as ₹118.75 Regular Price ₹125.00
Save 5%

कला की काल कोठरी। धू-धू कर जलती काल कोठरी। कर गया जो प्रवेश इसमें नहीं आ सकता कभी बाहर । एक लम्बा, काला कारावास । इससे बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं। बिल्कुल कोई रास्ता नहीं। सूर्य की किरण, मात्र एक किरण के लिए भी कोई प्रवेश-द्वार नहीं। क्यों चुनते हैं हम इस काल कोठरी को अपनी इच्छा से । मुक्ति के लिए। हमारी, आपकी मुक्ति के लिए। दुःख, सन्ताप, क्रोध, हिंसा, द्वेष और जो दोगला है, जो दिन-रात करता है हमारी आत्मा को लहूलुहान, उसे धोकर पोंछ देने के लिए। तभी तो आते हैं हम इस मायानगरी, थियेटर में। अपने आपसे मुक्त होने के लिए...। आपको भी असीम सन्ताप दिया होगा सन्तान ने। तार-तार हो गये कपड़े। कड़कती बिजली । बरसती बरसात में चीख़-चीख़ कर चुनौती देता किंगलियर । हम हैं, हम हैं किंगलियर। देह की विषैली देहरी से बाहर निकल पश्चात्ताप की अन्तिम सीमा पर खड़ा, सुलगती सलाखों से आँखें फोड़ता राजा इडिपस हम हैं। हम हैं राजा इडिपस । बन-बन भटकते राम हम हैं। लंका में दहाड़ते रावण हम हैं। अपनी बहन के एक के बाद एक पुत्र के हत्यारे कंस हम हैं। इस धू-धू कर जलती काल कोठरी में बैठे पोंछ देते हैं हम आत्मा के सारे घाव । एक लड़का था। उसकी टाँगें नहीं रहीं। और वह बनना चाहता अभिनेता । क्योंकि नहीं रहता था वह हम दो टाँगों वाले विकलांगों के इस ज़लील ज़माने में। देयर इज़ ए स्पेशल प्रॉविडेंस इन द फॉल ऑफ ए स्पैरो ।

-इसी पुस्तक से

ISBN
Kaal Kothri (Swadesh Deepak)
Publisher:
Vani Prakashan

More Information

More Information
Publication Vani Prakashan

Reviews

Write Your Own Review
You're reviewing:Kaal Kothri (Swadesh Deepak)
Your Rating
Copyright © 2025 Vani Prakashan Books. All Rights Reserved.

Design & Developed by: https://octagontechs.com/