Kabir : 'Khasam Khushi Kyon Hoy?'
कबीर : 'खसम खुशी क्यों होय?'
‘कबीर के आलोचक' समेत उपर्युक्त छह पुस्तकों और लम्बी बहस के बाद कबीर पर कोई नया और गम्भीर अध्ययन डॉ. धर्मवीर को नज़रअन्दाज़ करके नहीं किया जा सकता है, भले ही उसमें डॉ. धर्मवीर की काट ही काट हो। अगर उस बहस में शामिल रहने वाला कोई विद्वान अपने कबीर सम्बन्धी अध्ययन में डॉ. धर्मवीर को नज़रअन्दाज़ करता है तो अकादमिक जगत के लिए यह चिन्ता का बायस होना चाहिए। अकादमिक ईमानदारी का विकल्प नहीं है और उसका समुचित निर्वाह सभी विद्वानों की सम्मिलित ज़िम्मेदारी है। जब डॉ. पुरुषोत्तम अग्रवाल की पुस्तक 'अकथ कहानी प्रेम की : कबीर की कविता और उनका समय' का प्रकाशन-पूर्व प्रचार शुरू हुआ तो हमने स्वाभाविक तौर पर माना कि आलोचक ने डॉ. धर्मवीर की पुस्तकों और बहस को खाते में लेकर अपना अध्ययन प्रस्तुत किया होगा और इस रूप में वह कबीर पर एक महत्त्वपूर्ण आलोचना-कृति होगी। पुस्तक प्रकाशित होने पर हमें अपने एक शोधार्थी से यह जान कर आश्चर्य हुआ कि डॉ. अग्रवाल की पुस्तक में डॉ. धर्मवीर की पुस्तकों का कहीं ज़िक्र ही नहीं है। पाँच साल पहले जो महाभारत कबीर को लेकर मच चुका है, उसके बाद यह सम्भव नहीं है कि कबीर पर तीस-बत्तीस साल लगा कर काम करने वाले विद्वान के सामने डॉ. धर्मवीर के कबीर की तस्वीर न झूलती रहे।
यह स्वीकृत मान्यता है कि भक्तिकालीन भक्त एवं सन्त कवियों ने अपनी-अपनी मनोभूमि से समवेत रूप में प्रेम को पाँचवाँ पुरुषार्थ सिद्ध कर दिया था। यह भी माना जा सकता है कि कबीर और रैदास की प्रेमोपासना सम्भवतः सबसे निराली और सबसे उदात्त है। ऐसे में कबीर समेत समस्त भक्तिकालीन रचनाकारों के प्रेमोपासक होने से भला किसे ऐतराज हो सकता है? डॉ. धर्मवीर ने कबीर की खोज मुक्त-ज्ञान के करुणानिधान के रूप में की है। वहाँ उनसे मुठभेड़ की जा सकती है, जो कुछ हद तक हुई भी, और धर्मवीर ने जवाब भी दिए। उनके जवाबों को अपर्याप्त, यहाँ तक कि गलत ठहराया जा सकता है। डॉ. अग्रवाल की पुस्तक के शीर्षक से ही यह समझा जा सकता है कि लेखक ने प्रेम की अकथ कहानी की आड़ में ज्ञान पर वर्चस्व की राजनीति की है। कबीर को डॉ. धर्मवीर से छुड़ा कर प्रेम के पुराने अखाड़े में खींच कर ले जाना दरअसल प्रतिक्रियावाद कहा जायेगा। दलित-चिन्तन की भूमि से इसे ब्राह्मणवादी साजिश भी कहा जा सकता है हमने इस पुस्तक की राजनीति के बारे में बाहर से बताया है। बेहतर होगा कि डॉ. धर्मवीर तीन दशक का समय लगा कर लिखी गयी डॉ. अग्रवाल की बहुप्रशंसित पुस्तक को पढ़ें और उसकी अन्दरूनी राजनीति की विस्तृत समीक्षा करें।
- डॉ. प्रेम सिंह