Kagzi Burj
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"काग़ज़ी बुर्ज -
'काग़ज़ी बुर्ज' की कहानियाँ स्थापित मूल्यों के गिरते बुर्जों पर चिपके काग़ज़ी पैबन्दों के सुराग खोजती हैं। वो बुर्ज चाहे स्त्री को महिमामण्डित करनेवाली खोखली परम्पराओं की आड़ हों या जीवन सम्बन्धों की जीर्णशीर्ण दन्तकथाएँ।
मीरा कांत के इस दूसरे संग्रह की ये कहानियाँ वस्तुतः स्त्री जीवन और किसी न किसी रूप में मात खाये हुए मानव मन की ऊबड़-खाबड़ संरचना की अनवरत यात्रा है। चाहे भीतर जमी स्मृतियों के किनारे बसा डायस्पोरा का दर्द हो, इतिहास के गर्त में दबी-घुटी दूर से आती कोई आर्त पुकार हो, ज़िन्दगी से धकियाये लोगों के चटखते सपने हों अथवा जीवन संघर्ष में सामान्य असामान्य को जुदा रखनेवाली लक़ीर पर चलते हुए लगभग सन्धिप्रदेश की दुनिया में जा पहुँची किसी स्त्री की बेबस तन्हा ज़िन्दगी हो—ये सब सार्थक पड़ाव हैं उस रचनात्मक यात्रा के जो दुर्गम ऊँचाइयों और गहरी खाइयों के फ़ासले तय करती है।
ये कहानियाँ आतंक पैदा करनेवाले उन प्राचीरों और बुर्जों के लिए कोई अकेली चुनौती न बनकर अनगिनत बन्द पलकों को खोलने का आह्वान हैं। इनका गोचर-अगोचर पाठ मजबूर ज़िन्दगियों के चेहरों पर लिखे शोकगीतों को मुखर करता है, इस हद तक कि उनका संघर्ष पाठकों के भीतर भी धड़क उठे।
मीरा कांत का गल्प गद्य और पद्य के बीच चले आ रहे सदियों पुराने मनमुटाव को भुलाने का एक सफल प्रयास है।
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ISBN
9788126318896