Kahani Parampara Aur Pragati
समकालीन हिन्दी कहानी के बारे में खगेन्द्र ठाकुर की यह पुस्तक अपने ढंग की आलोचना पुस्तक है। यह हिन्दी कहानी का इतिहास नहीं है, लेकिन कहानी के विकास की विभिन्न अवस्थाओं की रचनात्मक विशेषताओं का संकेतक सम्बन्ध अवश्य मिल जाता है। हिन्दी कहानी के इतिहास को समझने की दृष्टि तो बिल्कुल साफ-साफ मिलती है। कहानी-अध्ययन की जितनी व्यापक, गम्भीरता और वस्तुगतता इस पुस्तक में मिलती है, वह अन्यत्र दुर्लभ है। इस पुस्तक में कहानी की प्रवृत्तियों की समीक्षात्मक खोज करने की कोशिश की गयी है। इसके साथ ही कहानी के विकास के माध्यम या निमित्त बने अनेक प्रमुख कहानीकारों की मूल्यांकनपरक समीक्षा भी है। हिन्दी कहानी मुख्यतः बीसवीं सदी की लोकप्रिय विधा है। इस पुस्तक में 1901 में प्रकाशित माधवराव सप्रे की कहानी 'टोकरी भर मिट्टी' से चल कर अद्यतन कहानीकार की रचनाशीलता का विवेचन यहाँ उपलब्ध है; भले ही इसके बाद भी कुछ जगहें खाली रह गयी हों। जिन कहानीकारों की कलम से बीसवीं सदी का अन्त हुआ और इक्कीसवीं सदी की देहरी पर हिन्दी कहानी चढ़ी और आगे कदम बढ़ा रही है, उन पर खास ध्यान दिया गया है। समकालीन दौर के एक अत्यन्त प्रमुख कहानीकार ने कहा-हिन्दी कहानी आलोचना को डॉ. नामवर सिंह ने जहाँ छोड़ा, उसे वहाँ से आगे बढ़ाने में समर्थ हैं खगेन्द्र ठाकुर इसी दौर के एक और प्रमुख कहानीकार ने कहा-अभी भी हिन्दी आलोचना में खगेन्द्र ठाकुर ही हैं, जो विधा में प्रवेश करके कहानी के कथा-तत्त्व की व्याख्या करते हुए कथ्य को पकड़ते हैं और तब कहानी का मूल्यांकन करते हुए उसका महत्त्व बताते हैं। यह कहानी आलोचना की अलग पद्धति है। एक और लेखक ने कहा कि खगेन्द्र ठाकुर अपनी आलोचना में कभी आक्रामक नहीं होते, विवेक और सन्तुलन के साथ रचना को समझने की कोशिश करते हैं। कहानी आलोचक के रूप में खगेन्द्र ठाकुर की अपनी कुछ विशेषताएँ हैं। एक प्रबुद्ध पाठक ने कहा कि खगेन्द्र ठाकुर की आलोचना पढ़ते हुए लगता है कि कहानी पढ़ रहा हो। इसलिए कि उनकी आलोचना की भाषा के वाक्यों में अद्भुत संगति और प्रवाहमयता है। पुस्तक रूप में प्रकाशित ये लेख नये सिरे से आकृष्ट करेंगे और नया स्वाद देंगे। इस पुस्तक में पाठक और आलोचक दोनों को स्वातन्त्र्योत्तर हिन्दी कहानी की उपलब्धियों और उसके परिप्रेक्ष्य की वैज्ञानिक समझ मिलेगी।