Kale Karname
काले कारनामे -
निराला साहित्य को पढ़ते हुए लगता है कि वे पद्य के युग में गद्य की विराट् संवेदना लेकर पैदा हुए थे। इसलिए आलोचकों ने उनके गद्य-साहित्य को काफ़ी देर से सराहा। छायावाद के उस विराट् युग में उनकी कविताओं की ही चर्चा अधिक रही। निराला का गद्य साहित्य है भी विपुल मात्रा में। उनके कुल लघु-बृहद्। पूर्ण-अपूर्ण नौ प्रकाशित उपन्यास हैं। चार कहानी संग्रह हैं और वह आलोचना पुस्तकें हैं। इसके अलावा भी उनके दर्जनों निबन्ध एवं अन्य रचनाएँ हैं। निराला गद्य को 'जीवन संग्राम की भाषाएँ कहते थे और अपने तई उन्होंने उसे कविता से कम महत्त्व कभी भी नहीं दिया, अगर अधिक नहीं दिया हो तो।
निराला के गद्य-साहित्य की एक विशिष्टता जो सहज ही अपनी ओर ध्यान खींचती है वह यह है कि उसमें सामान्य व्यक्ति के जीवन का जश्न है। उसमें उनके जीवन का अभाव है, तो भाव भी है, शोक है तो राग भी है। लेकिन है वह सामान्य व्यक्ति का जीवन ही। अपने समकालीनों से निराला की एक और विशेषता उन्हें उनसे अलगाती है वह यह है कि सामान्य जनों का चित्रण करते हुए तटस्थ मुद्रा नहीं अपनाते। बल्कि उनसे तादात्म्य स्थापित करते दिखाई देते हैं। निराला का यही 'निजपन' उनके चरित्रों को बेजोड़ बना देता है उन्हें अपने समय से आगे का रचनाकार ठहरता दिखाई देता है।
निराला के उपन्यासों को पढ़ते हुए यह लगता है कि मानों वे गद्य की समस्त सम्भावनाओं की छानबीन कर रहे हों। उनके उपन्यासों में ज़्यादा चर्चा कुल्ली भाट विल्लेसुर बकरिहा आदि की ही होती है 'काले कारनामे' का कोई ज़िक्र नहीं आता। यह एक ऐसा उपन्यास है जो इसका प्रमाण है कि निराला के गद्य में विविधता कितनी थी और उनका 'रेंज' क्या था। 'काले कारनामे' पढ़ना असल में निराला के एक नये पाठ से गुज़रना भी है। एक अलग पाठ से।