Kali Chhoti Machhli
काली छोटी मछली -
समद बहरंगी की यह कहानियाँ फारसी से हिन्दी में अनूदित हुई जरूर हैं मगर पढ़नेवाले को लगेगा कि यह कहानियाँ लेखिका की हिन्दी भाषा में लिखी उनकी मौलिक कहानियाँ हैं। भाषा का प्रवाह, हिन्दी मुहावरा, कहानियों का रोचक परिवेश पाठक को सोचने पर मजबूर करता है। ये कहानियाँ जैसे उसकी अपनी कहानियाँ हैं। ये क़िस्से, ये घटनाएँ, यह किरदार, भूख और बेकारी, प्यार और बेबसी, दरअसल दुनिया के हर मुल्क़ की दास्तान है चाहे 'नारंगी का छिलका' कहानी हो या फिर 'चौबीस घण्टे सोते-जागते' लम्बी कहानी हो।
'काली छोटी मछली' एक ऐसी कहानी है जो हर शख़्स की कहानी हो सकती है। हर वह पाठक जो आगे बढ़ने की ललक अपने सीने में छुपाए हुए है उसे 'काली छोटी मछली' में अपनी भावनाओं की परछाईंयाँ और अभिव्यक्तियाँ डोलती नज़र आयेंगी। काली छोटी मछली का विद्रोह वास्तव में अपने परिवेश में व्यापक घुटन और पिछड़ापन के प्रति एक यथार्थ है जिसको हम सब रोज़ झेलते हैं। कुछ उससे निकल पाते हैं कुछ नहीं। ये कहानियाँ रोचक हैं। सारे चरित्र हमारे आस-पास के हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि इस कहानी में अन्त में जो एक और कहानी की शुरुआत मौजूद है कहानी सुनने के बाद जहाँ सारी मछलियाँ सो जाती हैं वहीं लाल छोटी मछली समन्दर के बारे में सोचते-सोचते पूरी रात आँखों ही आँखों में गुज़ार देती है।