यूँ तो दिनकर जी की कविताओं के प्रायः नौ संकलन हैं, किन्तु उनके प्रमुख काव्य-संकलन 'चक्रवाल', 'आज के लोकप्रिय कवि', जिसका संकलन श्री मन्मथनाथ गुप्त ने किया था, और 'रश्मिलोक' व 'संचयिता' हैं। दिनकर जी ने 'रश्मिलोक' का स्वत्वाधिकार मुझे दिया है। अतएव इस संग्रह में इन पुस्तकों में सर्वाधिक आवृत्ति जिन कविताओं की हुई है, उसे ही मैंने प्रमुखता दी है। ‘सीपी और शंख' में दिनकर जी ने विभिन्न भाषाओं के अपने कुछ पसन्दीदा कवियों का अनुवाद संकलित किया है। किन्तु बहुत-से दिनकर-प्रेमी यह मानते हैं कि यह अनुवाद उन कविताओं से मात्र प्रेरणा लेकर किया गया है और इसमें मौलिकता है। किन्तु दिनकर जी की दूसरी डी.एच. लॉरेंस की कविताओं के संग्रह ‘आत्मा की आँखें' से कोई कविता 'चक्रवाल', 'आज के लोकप्रिय कवि' व ‘संचयिता' में प्रायः नहीं मिली, फिर भी मैंने चयन की प्रक्रिया की अवहेलना कर इस संग्रह को अद्यतन बनाने के लिए ‘आत्मा की आँखें' से ‘मच्छर' और 'आदमी' नामक शीर्षक दो कविताओं को सम्मिलित किया है। यह कविताएँ दिनकर जी की प्रमुख कविताओं, मेरी पसन्द के अनुसार नहीं, बल्कि दिनकर जी की प्रतिनिधि कविताओं के तौर पर चुनी गयी हैं। आशा है। कि दिनकर साहित्य के अध्येता व स्नेही जनों को इस संग्रह के द्वारा सम्पूर्णता में तो सम्भव नहीं है किन्तु फिर भी दिनकर जी की सम्पूर्ण काव्य की एक छटा जरूर दिख जायेगी। -भूमिका से
रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 23 सितम्बर 1908 को बिहार के बेगूसराय जिला के सिमरिया ग्राम में हुआ था। उनके पिता जी बाबू रवि सिंह एक साधारण किसान थे एवं माता मनरूप देवी एक कुशल गृहिणी। रामधारी सिंह दिनकर प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद पढ़ने के लिए कई किलोमीटर पैदल चलकर मध्य विद्यालय से लेकर मेट्रिक परीक्षा पास की। मैट्रिक परीक्षा में सर्वाधिक अंक प्राप्त करने के कारण उन्हें 'भूदेव स्वर्ण पदक' दिया गया। 1932 में पटना कॉलेज़ से इतिहास में प्रतिष्ठा हासिल की। पारिवारिक बोझ के कारण हाई स्कूल बरबीघा (मुंगेर) में वर्ष 1933-34 में प्राध्यापक पद स्वीकार किये। सब रजिस्ट्रार से लेकर जन सम्पर्क विभाग, बिहार के उप-निदेशक के पद पर उन्होंने कार्य किया। स्नातक की डिग्री होने के बावजूद साहित्य से गहरे लगाव और विषय में दक्षता के कारण सन् 1950 में लंगट सिंह कॉलेज, मुजफ़्फ़रपुर में हिन्दी के प्राध्यापक एवं विभागाध्यक्ष पद पर नियक्ति हुई। 1952 में जब भारत की प्रथम संसद का निर्माण हुआ तो उन्हें राज्यसभा से निर्वाचित किया गया जो लगभग 12 वर्षों तक रहे। बाद में दिनकर जी सन 1964-1965 तक भागलपुर विश्वविद्यालय का कलपति रहे। वर्ष 1965 से 1971 तक भारत सरकार के प्रथम हिन्दी सलाहकार के रूप में उन्होंने बहुत ही महत्त्वपूर्ण कार्य किये। राष्ट्रकवि दिनकर ने विभिन्न पदों पर रहते हुए साहित्य सृजन में कोई कमी न की और प्रमुख कृति रेणुका, हुंकार, रसवन्ती, द्वन्द्वगीत, कुरुक्षेत्र, सामधेनी, रश्मिरथी, उर्वशी, संस्कृति के चार अध्याय एवं अन्य का प्रकाशन किये। सन् 1973 में 'उर्वशी' काव्य प्रबन्ध के लिए उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजा गया। लोग उन्हें गर्जन और हुंकार के कवि के रूप में जानते थे, लेकिन जिस प्रकार प्रकाश के अनेक रंग होते हैं, ठीक उसी प्रकार दिनकर की कविता के भी कई रंग हैं। दिनकर सात्त्विक क्रोध, कोमल करुणा और अनुपम सौन्दर्य के अद्भुत कवि थे। आज भी उनकी कृतियों के अध्ययन, मनन और अनुशीलन से अन्याय एवं शोषण के खिलाफ़ संघर्ष की अद्भुत शक्ति मिलती है। दिनकर जी ने अपनी पचास से अधिक ओजस्वी कृतियों के माध्यम से राष्ट्रीयता की भावना को मज़बूती प्रदान की है और भारत एवं भारतीय संस्कृति को गौरवान्वित किया है। हिन्दी भाषा और साहित्य को समृद्ध करने में दिनकर जी का योगदान अप्रतिम है। वर्ष 1974 में चेन्नई (तमिलनाडु) में लालाजी तिरुपति दर्शन करने गये थे। दर्शन के कुछ घण्टे के बाद उनका देहान्त हो गया। लेखक परिचय राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर स्मृति न्यास डॉट कॉम से