Khidkiyan
दामोदर खड़से का उपन्यास ‘खिड़कियाँ’ पढ़ते समय ऐसा लगता है कि पाठक स्वयं अपने सामने खड़े हैं। दुनिया में कई लोग ऐसे हैं, जो अकेले हैं और अपने-आप से लड़ रहे हैं। यह उपन्यास पढ़ने पर पाठक अपने-आपको अकेला महसूस नहीं करेंगे। अपने जैसे कई लोग हमारे आसपास हैं, यह पाठक अनुभव करेंगे। जब व्यक्ति अपनी इच्छा से अकेलापन चुनता है, तब वह ‘एकान्त’ पा जाता है। फिर इस ‘एकान्त’ में अकेले होकर भी ख़ुश रहता है। ऐसी स्थिति में वह स्वयं को तरोताज़ा, सकारात्मक और ऊर्जावान रखता है। इस उपन्यास का ‘नायक’ अरुण प्रकाश ऐसा ‘एकान्त’ हासिल करने में यशस्वी हो जाते हैं। वे ‘खिड़कियों’ से कई लोगों के जीवन को अनुभव करते हैं। उन्हीं अनुभवों से वे अपने जीवन को देखते हैं- इसी से उन्हें ‘एकान्त’ की प्राप्ति होती है। ऐसा ही ‘एकान्त’ पाठक महसूस कर सकें, यही दामोदर खड़से बताना चाहते हैं और लगता है, यह बताने में वह पूर्णतः सफल हुए हैं।