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Vani Prakashan
Khoon Ke Chhinte Itihas Ke Pannon Par
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Khoon Ke Chhinte Itihas Ke Pannon Par
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आज जो मुझे गाँवों में दीन-हीन अवस्था में देखता है, उसे गुमान भी नहीं हो सकता कि सदियों की कूच में मैंने साम्राज्यों का संचालना किया है और अवरिल जनसंख्या मेरे संकेतों पर नाचती रही है। ना, मैं अब-सा दीन कभी न था। यह मेरे चरम उत्कर्ष का वैषम्य है। गाँवों में वस्तुतः मेरे प्रेत की छाया डोल रही है। मैं ब्राह्मण हूँ, मेरी कहानी ब्राह्मण की है-दृप्त, उद्दंड, ज्ञानपर। मैं केवल भारत का ही नहीं हूँ। सारे संसार की प्राचीन सभ्यताओं का मैं संचालक समर्थ अंग रहा हूँ। मिस्री राजाओं का मैं विशेष सुहृद् था। उस अदुत अनुलेप का आविष्कार मैंने की किया था।
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Khoon Ke Chhinte Itihas Ke Pannon Par
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